अन्ना हजारे का जीवन परिचय

अन्ना हजारे का जीवन परिचय, Anna Hazare Biography in Hindi, किसन बाबूराव हजारे का जन्म १५ जून १९३७ को महाराष्ट्र के अहमदनगर के रालेगन सिद्धि गांव के एक मराठा किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबूराव हजारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे था। उनका बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे तथा दादा सेना में थे। दादा की तैनाती भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पूर्वंजों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था।

Anna Hazare Biography Hindi Biography
Advertisement

किसन बाबूराव हजारे एक भारतीय समाजसेवी हैं। अधिकांश लोग उन्हें अन्ना हजारे के नाम से जानते हैं। सन् १९९२ में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। सूचना के अधिकार के लिये कार्य करने वालों में वे प्रमुख थे। जन लोकपाल विधेयक को पारित कराने के लिये अन्ना ने १६ अगस्त २०११ से आमरण अनशन आरम्भ किया था।

दादा की मृत्यु के सात वर्षों बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वे दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचने वाले की दुकान में ४० रुपये के वेतन पर काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।

वर्ष १९६२ में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना १९६३ में सेना की मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर के रूप में भर्ती हो गए। अन्ना की पहली नियुक्ति पंजाब में हुई। १९६५ में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हजारे खेमकरण सीमा पर नियुक्त थे। १२ नवम्बर १९६५ को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहाँ तैनात सारे सैनिक मारे गए। इस घटना ने अन्ना के जीवन को सदा के लिए बदल दिया। इसके बाद उन्होंने सेना में १३ और वर्षों तक काम किया। उनकी तैनाती मुंबई और कश्मीर में भी हुई। १९७५ में जम्मू में तैनाती के दौरान सेना में सेवा के १५ वर्ष पूरे होने पर उन्होंने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। वे पास के गाँव रालेगन सिद्धि में रहने लगे और इसी गाँव को उन्होंने अपनी सामाजिक कर्मस्थली बनाकर समाज सेवा में जुट गए।

आर्मी से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन सामाजिक कार्य करने में व्यतीत किया, इसलिए वे कहते थे की, 'मेरे गाव में खुद का एक घर है लेकिन पिछले ३५ सालो से मै अपने घर में नहीं गया हूँ। मैंने करोड़ो रुपयों की योजनाओ को अमल में लाया लेकिन आज भी मेरे पास खुद का बैंक बैलेंस नहीं है। पिछले १२ सालो से मै भ्रष्टाचार को हटाने के इस अभियान में लड़ रहा है। मेरा यह अभियान बिना किसी ग्रांट के केवल लोगो के सहकार्य से ही सफलता पूर्वक पुरे भारत में चल रहा है। मै जहा भी सभा लेने जाता हु वहा मै लोगो से पैसो की अपील करता हूँ ताकि मै ज्यादा से ज्यादा लोगो की सेवा कर सकू, और लोग हमेशा मेरा साथ देते है। लोगो से ही मिले उन पैसो का उपयोग मै अपने अभियान में करता हूँ। जमा किये हुए पैसो को गाव वालो के ही सामने गिना जाता है जहा मेरे स्वयंसेवक गिने हुए पैसो की रिसीप्ट भी बना कर देते है।'

बाद में उन्होंने यह बताया की, 'ये अभियान जो हमने कुछ साल पहले शुरू किया था, उस समय हमारे में एक रूपया भी नहीं था, जो आज अपने पंखो की उड़ान से राज्य की ३३ जिलो और २५२ तहसीलों में पहोच चूका है। इसी को ध्यान में रखते हुए हमने ग्रामसभाओ को भी ये अधिकार प्रदान किये, जिससे वहा कार्यरत अधिकारियो द्वारा लोगो को लुटा ना जा सके। इस सभी से भ्रष्टाचार कई जगहों पर धीरे-धीरे कम होने लगा. और इन सभी से जो लोग गरीब परिवार से थे उन्हें सामाजिक न्याय भी मिलने लगा। जहाँ राज्य सरकार ने गरीब लोगो के लिए बहुत सी योजनाये भी बनाई जैसे की उन्हें केरोसिन देना, एलपीजी देनाऔर राशन कार्ड प्रदान करना ये सभी अन्ना हजारे के प्रयासों से ही गरीबो के घर तक आज पहुँच पा रहे है।'

अन्ना हजारे ने ये सोचा की विकास के मामले में केवल भ्रष्टाचार ही एक सबसे बढ़ी बाधा है इसलिए १९९१ में उन्होंने अपना एक नया अभियान शुरू किया जिसे भ्रष्टाचार विरोधी जन आन्दोलन का नाम दिया गया। इस से पता लगाया गया की ४२ फारेस्ट अधिकारियो ने संधि का लाभ उठाते हुए करोडो का भ्रष्टाचार किया है। अन्ना हजारे ने इसके विरुद्ध साबुत पेश कर उन्हें जेल में डालने की अपील भी की लेकिन उनकी इस अपील को ख़ारिज कर दिया गया, क्योंकी वे सारे अधिकारी किसी बड़ी प्रचलित राजनितिक पार्टी के ही अधिकारी थे। और इस बात से निराश होकर अन्ना हजारे ने उन्हें दिया गया पद्मश्री पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति को वापिस कर दिया और प्रधानमंत्री इंदिरा राजीव गाँधी द्वारा दिया गया वृक्ष मित्र पुरस्कार भी वापिस कर दिया।

बाद में वे आलंदी गए जहा उन्होंने इसी कारणवश आन्दोलन भी किये। इस से जागृत होकर सरकार ने तुरंत भ्रष्टाचारियो पर तुरंत प्रतिक्रिया की। हजारे के इस आन्दोलन का सरकार पर गहरा प्रभाव पड़ा। ६ या उस से भी ज्यादा मंत्रियो को इस्तीफा देना पड़ा और ४०० से ज्यादा अधिकारियो को काम से निकलकर वापिस अपने-अपने घर भेजा गया।

लेकिन अन्ना हजारे इस छोटी सी प्रतिक्रिया से खुश नहीं थे वे पुरे के पुरे सिस्टम को ही बदलना चाहते थे और भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने सहकर्मियों के साथ जानकारी प्राप्त करने के अभियान की शुरुवात की। इसे देखते हुए आज़ाद मैदान, मुंबई १९९७ के इस आंदोलन की तरफ सरकार ने ध्यान नहीं दिया और उनकी मांग को ख़ारिज कर दिया गया। लोगो को अपने इस अभियान की जानकारी देने और इस हेतु उन्हें जागृत करने के लिए हजारे ने पुरे राज्य की यात्रा भी की। और सरकार ने ये वादा भी किया की जानकारी के अधिकार का कानून बनाया जायेंगा लेकिन राज्यसभा में इसका कोई जिक्र नहीं किया जायेंगा। लेकिन हजारे को ये मनुर नहीं था, वे तक़रीबन इस आन्दोलन के दौरान १० दिनों तक अशांत रहे।

अंत में जुलाई २००३ में उन्होजे फिर से भूख हड़ताल की जो वाही आज़ाद मैदान में ही थी। और १२नों की भूख हड़ताल के बाद आख़िरकार भारत के राष्ट्रपति ने इस इकरारनामे पर अपने हस्ताक्षर दे ही दिए और सभी रजो में भी इसे लागु करने के आदेश दिए। और इसी तरह २००५ में राष्ट्र स्तरीय जानकारी के अधिकार को बनाया गया।

जानकारी प्राप्त करने का अधिकार-२००५ लागू होने के बाद हजारे ने १२००० किलोमीटर की यात्रा लोगो को इस अधिकार के बारे में जागृत करने के लिए की। और दूसरी तरफ वे कई कॉलेज स्कूल में भी गये और उन्होंने २४ से ज्यादा जिला और राज्य स्तरीय मीटिंग में भी इस अधिकार के बारे में लोगो को जागृत कराया। तीसरे चरण में वे रोज २-३ सभाएं लेते गये जो उन्होंने १५५ से भी ज्यादा तहसीलों में ली। इस तरह जानकारी के अधिकार की लोगो में जागरूकता बढ़ाने के लिए जगह-जगह पोस्टर्स छपे गये, बैनर लगाये गये, कई छोटे-छोटे अभियान आयोजित किये गये और साथ ही एक लाख से भी ज्यादा किताबो को कम से कम कीमत में बेचा गया। और लोगो में जागरूकता लाने के लिए ये पर्याप्त था इस से लोग शिक्षित होने लगे और अपने अधिकारों को जानने लगे।

बाद में हजारे को पुनः पदमश्री और पद्मभूषण प्रदान किया गया. इसके अलावा उन्हें स्वामी विवेकानंद क्रिताद्न्यता निधि में से २५ लाख पुरस्कार स्वरुप दिए गये। इनमे से २ लाख से हर साल हजारे २५-३०गरीब युगलों का सामूहिक विवाह कराते थे।

जन लोकपाल विधेयक (नागरिक लोकपाल विधेयक) के निर्माण के लिए जारी यह आंदोलन अपने अखिल भारतीय स्वरूप में ५ अप्रैल २०११ को समाजसेवी अन्ना हजारे एवं उनके साथियों के जंतर-मंतर पर शुरु किए गए अनशन के साथ आरंभ हुआ, जिनमें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविंद केजरीवाल, भारत की पहली महिला प्रशासनिक अधिकारी किरण बेदी, प्रसिद्ध लोकधर्मी वकील प्रशांत भूषण, आदि शामिल थे। संचार साधनों के प्रभाव के कारण इस अनशन का प्रभाव समूचे भारत में फैल गया और इसके समर्थन में लोग सड़कों पर भी उतरने लगे। इन्होंने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था।

गांधी की विरासत उनकी थाती है। कद-काठी में वह साधारण ही हैं। सिर पर गांधी टोपी और बदन पर खादी है। आंखों पर मोटा चश्मा है, लेकिन उनको दूर तक दिखता है। इरादे फौलादी और अटल हैं। महात्मा गांधी के बाद अन्ना हजारे ने ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। इसके जरिए उन्होंने भ्रष्ट प्रशासन को पद छोड़ने एवं सरकारों को जनहितकारी कानून बनाने पर मजबूर किया है। अन्ना हजारे को आधुनिक युग का गाँधी भी कहा जा सकता है अन्ना हजारे हम सभी के लिये आदर्श है।

अन्ना हजारे गांधीजी के ग्राम स्वराज्य को भारत के गाँवों की समृद्धि का माध्यम मानते हैं। उनका मानना है कि 'बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।' उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से वितरित न हो पाने का कारण रहा गाँवों को केन्द्र में न रखना।

व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गांधीजी के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज ८५ गावों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया है। हजारे ने पिछले दस दिन से जारी अपने अनशन को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक तौर पर तीन शर्तों का ऐलान किया। उनका कहना था कि तमाम सरका री कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए, तमाम सरकारी कार्यालयों में एक नागरिक चार्टर लगाया जाए और सभी राज्यों में लोकायुक्त हो।

नोट :- आपको ये पोस्ट कैसी लगी, कमेंट्स बॉक्स में जरूर लिखे और शेयर करें, धन्यवाद।

Advertisement
Advertisement

Related Post

Categories