क्रिस्टोफ़र कोलम्बस का जीवन परिचय

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क्रिस्टोफर कोलंबस का जन्म इ.स. 1451 में जिनोआ में हुआ। उनके पिता जुलाहा थे। उन्हें दो भाई थे। बचपने कोलंबस पिताजी को उनके बिजनेस में मदत किया करते थे, लेकिन आगे उन्हें समुंदर का आकर्षण लगने लगा। अपने लगाव से और अभ्यास से उन्होंने नौकायन का ज्ञान प्राप्त किया। लॅटिन भाषा भी उन्हें अच्छे से आती थी। नौकायन का ज्ञान होने की वजह से उन्हें उत्तर की तरफ जानेवाली बोंट के साथ व्यापार के लिये जाने का मौका मिला। इंग्लंड, आयर्लड और आईसलॅड के 'थुले' इस जगह तक वैसेही आफ्रिका के पश्चिम के तरफ के अझोरेस, कॅनरी, केव व्हरडे इन बेंटो के साथ आफ्रिका के पश्चिम किनारे के गयाना तक उनका सफर हुआ।

Christopher Columbus Jeevan Parichay Biography
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क्रिस्टोफर कोलम्बस एक समुद्री-नाविक, उपनिवेशवादी, खोजी यात्री उसकी अटलांटिक महासागर में बहुत से समुद्री यात्राओं के कारण अमेरिकी महाद्वीप के बारे में यूरोप में जानकारी बढ़ी। यद्यपि अमेरिका पहुँचने वाला वह प्रथम यूरोपीय नहीं था किन्तु कोलम्बस ने यूरोपवासियों और अमेरिका के मूल निवासियों के बीच विस्तृत सम्पर्क को बढ़ावा दिया। उसने अमेरिका की चार बार यात्रा की जिसका खर्च स्पेन की रानी इसाबेला (Isabella) ने उठाया। उसने हिस्पानिओला (Hispaniola) द्वीप पर बस्ती बसाने की कोशिश की और इस प्रकार अमेरिका में स्पेनी उपनिवेशवाद की नींव रखी। इस प्रकार इस नयी दुनिया में यूरोपीय उपनिवेशवाद की प्रक्रिया आरम्भ हुई।

उस समय में यूरोपियन व्यापारी उनके पास का माल भारत और आशिया खंड के बाजार में बेचा करते थे। और वापिस जाते समय वहा के मसालों के पदार्थ युरोप में लाकर बेचते थे। ये व्यापार जमीन के रास्ते से होता था। कॉन्स्टॅन्टी नेपाल ये शहर इस दुष्टिसे आशिया खंड का द्वार था। यहा से तुर्कस्थान, इराण, अफगनिस्तान के रास्ते से भारत में पहुचता था। सन 1453 में तुर्कानी ने कॉन्स्टॅन्टी नेपाल जित लिया और उन्होंने ये रास्ता यूरोपियन के लिये बंद किया। लेकीन तुर्की लोगों ने रास्ता बंद करने के वजह से यूरोपियन व्यापारियों के सामने बहोत बड़ी समस्या आयी।

भारत और आशिया खंड के प्रदेशो की ओर जाने वाला नया रास्ता ढूंढ निकालना बहोत जरुरी हुआ। इस के लिये बहोत प्रयास किये गये। तब पृथ्वी गोल होने के वजह से समुंदर के रास्ते से पश्चिम के दिशा में जाने से भारत मिलेगा थे विचार कोलंबस के दिमाग में आया। लेकीन पश्चिम तरफ से ये प्रदेश कितना दूर होंगा इसकी जानकारी किसी को भी नहीं थी। कोलंबस ने पुर्तगाल के राजा जॉन द्वितीय के सामने भारत की खोज करने का प्रस्ताव रखा। दरअसल कोलंबस को लग रहा था कि, पुर्तगाल पूर्व में व्यापार और उपनिवेश की संभावनाओं को तलाश रहा है। कोलंबस की योजना को पुर्तगाल के विद्वानों ने असंभव करार देते हुए उसे सपनो में रहने की संज्ञा दे दी। लिहाजा कोलंबस स्पेन चला गया। कहते हैं इंतजार कभी-कभी इतना लंबा हो जाता है कि उम्मीदें डावांडोल हो जाती है। कोलंबस भी निराश हो रहा था, उसका धैर्य टूटने लगा था।

कोलंबस ने अपनी पहली यात्रा तीन अगस्त 1492 को स्पेन के पालोस बंदरगाह से शुरु की। उस दिन बंदरगाह की रंगत कुछ और ही थी। स्पेन के राजा-रानी समेत हजारों लोग उस दिन एक ऐसे अभियान को हरी झंडी दिखाने आये थे, जो अगर कामयाब हो जाता तो आने वाले सालों में पूरे स्पेन की किस्मत बदल सकता था। बंदरगाह पर जो जहाज निकले थे उनका नाम था: सांता मारिया, नीना और पेंटा। सफर के दौरान कोलंबस अपनी यात्रा का विवरण लिखता रहा। 6 सितंबर को जहाज अफ्रिका के निकट केनेर द्वीप पहुँचा। एक महीना बीतते -बीतते भोजन का समान खत्म होने लगा था। बरहाल कोलंबस अपने साथियों का मनोबल बढाते हुए निरंतर यात्रा कर रहा था। आखिरकार लम्बी यात्रा के बाद 10 अक्टूबर को यात्रा के सत्तर दिन पूरे हो गये तब उन्हें एक चिड़िया उड़ती नज़र आई, लगा की गल्फ की खाड़ी आ पहुंची है।

कोलंबस के वाशिंगटन इरविंग की 1828 की जीवनी ने इस विचार को लोकप्रिय बनाया कि कोलंबस को अपनी योजना के लिए समर्थन प्राप्त करने में कठिनाई हुई थी क्योंकि कई कैथोलिक धर्मविज्ञानी आग्रह करते थे कि पृथ्वी सपाट है। वास्तव में, लगभग सभी शिक्षित पश्चिमी देशों ने कम से कम अरस्तू के समय से समझा था कि पृथ्वी गोलाकार है। टॉलेमी के काम में पृथ्वी की गोलाकारता का भी हिसाब है, जिस पर मध्ययुगीन खगोलशास्त्र काफी हद तक आधारित था। ईसाई लेखक जिनके कार्यों स्पष्ट रूप से इस विश्वास को प्रतिबिंबित करते हैं कि धरती गोलाकार है, इसमें सैंट बेडे ने अपने रिकॉर्ड के समय में सम्मानित किया था, जो कि ई। 723 के आसपास लिखा था। कोलंबस के समय में, आकाशीय नेविगेशन की तकनीकें, जो सूर्य की स्थिति और सितारों की स्थिति का उपयोग करती हैं आकाश, यह समझने के साथ कि पृथ्वी एक गोलाकार है, लंबे समय तक खगोलविदों के उपयोग में थी और नाविकों द्वारा कार्यान्वित होने लगा था।

जहां तक ​​तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व, इरोटोथिनेस ने सरल ज्यामिति का उपयोग करके और दो अलग-अलग स्थानों पर ऑब्जेक्ट्स की छायाओं का अध्ययन करके पृथ्वी की परिधि की सही गणना की थी: अलेक्जेंड्रिया और सियेन (आधुनिक आस्वान)। इरोटोथिनेस के परिणामों की पुष्टि अलेक्जेंड्रिया और रोड्स में तारकीय टिप्पणियों की तुलना द्वारा पुष्टि की गई थी, जो पहली सदी ईसा पूर्व में पोसिडोनियस द्वारा किया गया था। इन मापों को विद्वानों के बीच व्यापक रूप से जाना जाता था, लेकिन उन पुराने दूरी के यूनिटों के बारे में भ्रम, जिसमें उन्हें व्यक्त किया गया था, कोलंबस के दिनों में पृथ्वी के सटीक आकार के बारे में कुछ बहस के लिए प्रेरित किया था।

क्रिस्टोफर कोलंबस की खोज की गई सभी चीजों की आधिकारिक अर्ध सदी के बाद की सराहना की गई थी। इतनी देर क्यों? बात यह है कि इस अवधि के बाद, उपनिवेशित मेक्सिको और पेरू से पुरानी दुनिया के पूरे गैलेन को वितरित करना शुरू हुआ, सोने और चांदी के साथ भरवां स्पेनिश शाही खजाना अभियान, सोने की केवल 10 किलो तैयार करने के लिए खर्च किया, और तीन सौ वर्षों के लिए, स्पेन अमेरिका की कीमती धातुओं से बाहर ले करने के लिए समय पड़ा है, जिसका मूल्य शुद्ध सोने के कम से कम 3 लाख किलो था।

अफसोस, पागल सोने स्पेन के लिए अच्छा नहीं था, यह उद्योग या अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित नहीं किया और नतीजतन, देश अभी भी कई यूरोपीय देशों के पीछे निराशाजनक है। आज क्रिस्टोफर कोलंबस के सम्मान न केवल कई जहाजों और जहाज, शहरों, नदियों और पहाड़ों, लेकिन नाम में भी, उदाहरण के लिए, अल साल्वाडोर की मौद्रिक इकाई, कोलंबिया के राज्य, दक्षिण अमेरिका में स्थित है, साथ ही अमेरिका में एक प्रसिद्ध राज्य। कोलम्बस एक साहसी परिश्रमी, दूरदर्शी, दृढ संकत्यी यात्री थे । उन्होंने अपनी समुद्री यात्रा के दौरान अपार सम्मान पाया था । जब उन्हें जंजीरों से जकड़कर रयेन लाया जा रहा था, तो लोग स्तनकी जंजीरों को खोल देना चाहते थे, किन्तु कोलम्बस ने ऐसा करने से उन्हें रोक दिया । अपने परिश्रम, संघर्ष और राष्ट्रभक्ति का उन्हें जो दण्ड मिला, उसने उन्हें भीतर तक हिला दिया था । ससार को सीख देने के लिए ही शायद उन्होंने अपनी जंजीरों को अपनी कब्र पर रखवाया था।

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