हरिचन्द्र का जीवन परिचय, हरिचन्द्र की जीवनी, Haricandra Biography In Hindi, हरिचंद्र (हरिश्चंद्र?) दिगंबर जैन संप्रदाय के कवि थे। इन्होंने माघ की शैली पर धर्मशर्माभ्युदय नामक इक्कीस सर्गों का महाकाव्य रचा, जिसमें पंद्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ का चरित वर्णित है। ये महाकवि बाण द्वारा उद्धृत गद्यकार भट्टार हरिचंद्र से भिन्न थे, क्योंकि कि ये महाकाव्यकार थे, गद्यकाव्यकार थे, गद्यकार नहीं।
हरिचंद्र का समय ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी माना जाता है। सौभाग्य से इस महाकवि ने अंत में कुछ श्लोकों में स्वयं अपना भी परिचय दिया है। हरिचंद्र नोमकवंश के कायस्थकूल में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता परमगुणशाली आदिदेव तथा माता रथ्या थीं। गुरुकृपा से उनकी वाणी सारस्वते प्रवाह में स्नात होकर निर्मल हो गई थी -
अर्हत्पदाम्भोरुहचञ्चरीकस्तयो: सुत: श्रीहरिचंद्र आसीत्। गुरुप्रसादादमला बभूवु: सारस्वेत स्रोतसि यस्य वाच:।
जिस प्रकार राम ने अपने अनुज लक्ष्मण की सहायता से समुद्र पार कर लिया था, उसी प्रकार अपने अतिशयस्निग्ध अनुज लक्ष्मण की सहायता से उन्होंने शास्त्रपयोधि का पार प्राप्त कर लिया था।
यह वस्तुत: अत्यंत परिमार्जित शैली में सिद्धहस्त कवि की प्रौढ़ रचना समझ पड़ता है। कालिदास का प्रभाव तो कहीं कहीं अतिस्पष्ट प्रतीत होता है, जैसे रघुवंश के 'तमङ्क्मारोग्य शरीरयोगजै: सुखै'। ३। २६। इस श्लोक का 'उत्संगमारोप्य तमंगजं नृप:' इस श्लोक पर छठे सर्ग में वर्णित रानी सुव्रता की गर्भावस्था रघुवंश की सुदक्षिणा की सी ही है, आदि।
इस काव्य ने स्वयं पश्चाद्वर्ती महाकाव्यों को प्रभावित किया है। बारहवीं शती में महाकवि श्रीहर्ष द्वारा निर्मित 'नैषधीय चरित' धर्मशर्भाभ्युदय से अतिशय प्रभावित जान पड़ता है।