लाओ-सू का जीवन परिचय

लाओ-सू का जीवन परिचय, Lao Tzu Laozi Biography in Hindi, लाओ-सू, लाओ-सी या लाओ-से प्राचीन चीन के एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे, जो ताओ ते चिंग नाम के मशहूर उपदेश ले लेखक के रूप में जाने जाते हैं। उनकी विचारधाराओं पर आधारित धर्म को ताओ धर्म कहते हैं। लाओ-सू एक सम्मान जतलाने वाली उपाधि है, जिसमें 'लाओ' का अर्थ 'आदरणीय वृद्ध' और 'सू' का अर्थ 'गुरु' है। चीनी परम्परा के अनुसार लाओ-सू छठी शताब्दी ईसापूर्व में झोऊ राजवंश के काल में जीते थे। इतिहासकारों में इनकी जीवनी को लेकर विवाद है। कुछ कहते हैं कि वे एक काल्पनिक व्यक्ति हैं, कुछ कहते हैं कि इन्हें बहुत से महान व्यक्तियों को मिलकर एक व्यक्तित्व में दर्शाया गया है और कुछ कहते हैं कि वे वास्तव में चीन के झोऊ काल के दुसरे भाग में झगड़ते राज्यों के काल में (यानि पांचवीं या चौथी सदी ईसापूर्व में) रहते थे।

Lao Tzu Laozi Jeevan Parichay Biography
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ताओ धर्म चीन का एक मूल धर्म और दर्शन है। असल में पहले ताओ एक धर्म नहीं बल्कि एक दर्शन और जीवनशैली थी। बाद में बौद्ध धर्म के चीन पहुँचने के बाद ताओ ने बौद्धों से कई धारणाएँ उधार लीं और एक "धर्म" बन गया। बौद्ध धर्म और ताओ धर्म में आपस में समय समय पर अहिंसात्मक संघर्ष भी होता रहा है। ताओ धर्म और दर्शन, दोनो का स्त्रोत दार्शनिक लाओ-त्सी द्वारा रचित ग्रन्थ दाओ-दे-चिंग और ज़ुआंग-ज़ी है। सर्वोच्च देवी और देवता यिन और यांग हैं। देवताओं की पूजा के लिये कर्मकाण्ड किये जाते हैं और पशुओं और अन्य चीज़ों की बलि दी जाती है। चीन से निकली ज़्यादातर चीज़ें, जैसे चीनी व्यंजन, चीनी रसायनविद्या, चीनी कुंग-फ़ू, फ़ेंग-शुई, चीनी दवाएँ, आदि किसी न किसी रूप से ताओ धर्म से सम्बन्धित रही हैं। क्योंकि ताओ धर्म एक संगठित धर्म नहीं है, इसलिये इसके अनुयायियों की संख्या पता करना मुश्किल है।

ताओ ते चिंग या दाओ दे जिंग (Dao De Jing) प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक लाओ त्सू द्वारा रचित एक धर्म ग्रन्थ है जो ताओ धर्म का मुख्य ग्रन्थ भी माना जाता है। इसका नाम इसके दो विभागों के पहले शब्द को लेकर बनाया गया है - 'दाओ' यानि 'मार्ग' और 'दे' यानि 'गुण' या 'शक्ति' - जिनके अंत में 'जिंग' यानि 'पुरातन' या 'शास्त्रीय' लगाया जाता है। पारंपरिक मान्यता के अनुसार लाओ त्सू चीन के झोऊ राजवंश काल में सरकारी अभिलेखि (सिरिश्तेदार या रिकॉर्ड​-कीपर) थे और उन्होंने इस ग्रन्थ को छठी सदी ईसापूर्व में लिखा था, हालांकि इसकी रचना की असलियत पर विवाद जारी है। इसकी सबसे प्राचीन पांडुलिपियाँ चौथी शताब्दी ईसापूर्व से मिली हैं।

ताओ ते चिंग ग्रन्थ का सबसे पहला वाक्य है 'जिस मार्ग के बारे में बात की जा सके वह सनातन मार्ग नहीं है'। पूरे ग्रन्थ में बार-बार इस 'मार्ग' शब्द का प्रयोग होता है और समीक्षकों में इसको लेकर आपसी बहस हज़ारों सालों से चलती आई है। इस प्रश्न के उत्तर में कि यह किस मार्ग की बात कर रहा है - धार्मिक, दार्शनिक, नैतिक या राजनैतिक - समीक्षक ऐलन चैन ने कहा है कि 'ऐसी श्रेणियाँ ताओवादी नज़रिए में एक ही हैं और इनका खंडिकरण केवल पश्चिमी विचारधाराओं में ही होता है'। ताओ-धर्मियों के अनुसार ताओ में जिस मार्ग की बातें होती हैं वह सत्य, धर्म और पूरे ब्रह्माण्ड के अस्तित्व का स्रोत है।

ताओ ते चिंग में अक्सर कुछ पाने के लिए उस से विपरीत करने की शिक्षा दी जाती है, जिनमें 'मार्ग' और 'एक' शब्द मूल सत्य की तरफ़ इशारा करते हैं।

जब तुम ख़ाली होते हो, तुम्हे भरा जाता हैजब तुम पुराने पड़ते हो, तुम्हे नया किया जा सकता हैजब तुम्हारे पास कम हो, संतोष करना आसान होता हैजब तुम्हारे पास ज़्यादा हो, असमंजस बढ़ता हैइसलिए समझदार उस एक का साथ करते हैंऔर सब के लिए मिसाल बन जाते हैंवे स्वयं को प्रदर्शित नहीं करते, इसलिए सब उन्हें देखते हैंवे अपना प्रमाण नहीं देते, इसलिए महान होते हैंवे कोई दावा नहीं करते, इसलिए उनके श्रेय दिया जाता हैवे यश नहीं ढूंढते, इसलिए उनका नाम याद रखा जाता हैवे किसी से बहस नहीं करतेइसलिए कोई उनसे बहस नहीं करताताओ ते चिंग में इस बात का भी काफ़ी ब्यौरा है कि सच्चाई के अंत में पाखण्ड बढ़ता है।

जब महान ताओ को भुलाया जाता हैदया और न्याय (की बात) बढ़ती हैजहाँ लोग बुद्धिमान होते हैंमहान ढोंग शुरू होता हैजब पारिवारिक संबंधों में मधुरता नहीं होतीमाता-पिता से लगाव की बातें की जाती हैंजब देश में हाहाकार और कुव्यवस्था होती हैवफ़ादार मंत्रियों की प्रशंसा सुनाई देती हैनेताओं और राजाओं को शिक्षा दी जाती है कि सब से उत्तम नेतृत्व वह होता है जो लोगों को प्रतीत ही न हो।

सब से अच्छा शासक लोगों को एक छाँव ही लगता हैउसे से कम अच्छा शासक लोगों को प्रिय और प्रशंसनीय होता हैउस से भी कम अच्छा वह है जिस से लोगों को भय होऔर सब से बुरा वह है जिस से लोग नफ़रत करेंजो विशवास न करे उस पर विशवास नहीं किया जा सकतासमझदार लोगों का नेतृत्व उनके पीछे चलकर करते हैंजब कार्य पूरा और ध्येय सफल हो तो सब लोग कहते हैं -यह तो ख़ुद ही पूरा हो गया।

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