प्लेटो का जीवन परिचय

प्लेटो का जीवन परिचय, Plato Biography in Hindi, प्लेटो का जन्म एथेन्स में 428ई0 पू0 में हुआ । प्लेटो एक अमीर एवं प्रसिद्ध धराने में पैदा हुआ था प्लेटो यूनान का दार्शनिक (Greek Philosopher) था। वह सुकरात का शिष्य तथा अरस्तू का गुरू था। प्लेटो का पालन पोषण अमीरों की भॉति हुआ। अपने पिता से उसने कुष्ती लड़ना सीखा। प्लेटो का स्वास्थ्य बहुत अच्छा था और देखने में वह सुन्दर था। 20 वर्ष की अवस्था में प्लेटो महात्मा सुकरात के सर्म्पक में आया और उससे इतना प्रभावित हुआ कि उसने आपने व्यक्तित्व को सुकरात के व्यक्तित्व में आपने व्यक्तित्व को सुकरात के व्यक्तित्व में विलीन कर दिया।

प्रारम्भिक शिक्षा एक ओर तो बाल्याकाल से युवावस्था के लिए है, और दूसरी ओर सौनिक वर्ग के लिए है। इसी प्रकार उच्च शिक्षा एक और तो युवावस्था से प्रोढावस्था तक है, और दूसरी ओर शासक वर्ग के लिए है। प्रारम्भिक शिक्षक का ध्येय भावनाओं का परिमार्जन कर चरित्र - निर्माण करना है। उच्च शिक्षा का उदेष्य विज्ञान और ज्ञान द्वारा बुद्धि का परिष्कार करके विवके की सृष्टि एवं दिव्य दृष्टि को जन्म देता हैं।

Plato Jeevan Parichay Biography
Advertisement

लगभग 8 वर्ष तक प्लेटों सुकरात का शिष्य बना रहा। ऐसा प्रतीत होता है, है, कि कुलीन वर्ग में उत्पन्न होने के कारण उसकी स्वाभाविक इच्छा एथेन्स में राजनीतिक जीवन अपनाने की थी, किंतु उसके प्रिय गुरू और उसकी दृष्टि में विश्व में श्रेष्ठतम मानव सुकरात को जब 399 ई0 पू0 में मृत्यु दण्ड मिला तो इस घटना का उसके जीवन पर ऐसा आद्यात लगा कि उसने अपना सारी योजनाए द्य परिवर्तित कर दी और एक दार्शनिक जीवन को अपना लिया।

प्लेटो ने कहा जिस एयेन्स ने उसके गुरू की कीमत नही पहचानी, उसमें रहना निरर्थक है। सर्वोतम शासन प्रणाली की खोज में अगले 12 वर्षो तक मिस्त्र, इटली और यूनान के नगरों का भ्रमण करता रहा तथा एक युग बीत जाने के बाद एथेन्स लोट आया। प्लेटो ने 388 ई0 पू0 में एक शिक्षणालय खोला । यही प्लेटो की वह प्रसिद्ध आकादमी या शिक्षण संस्था थी जिसे युरोप का प्रथम विष्वविद्यालय कहा जा सकता हैं।

81 वर्ष की आयु में 347 ई0 पूर्व अपने पीछे अरस्तू आदि सैकड़ो षिष्यों को छोड़कर यह अमर दार्षनिक मृत्यु की गोद में सो गया । प्लेटो के ग्रन्थ की संख्या 36-38 बताई जाती है। इसमें प्रमुख ग्रन्थ -रिपब्लिक, दी स्टेसमैन तथा दी लाज हैं। प्लेटो ने अपने ग्रंथ रिपब्लिक में आदर्ष राज्य की चर्चा की हैं। अपने आदर्थ राज्य के निर्माण का प्रारम्भ प्लेटो ने व्यक्ति तथा राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों की प्रकृति पर विचार करते हुए किया है। प्लेटो का मत है, कि राज्य वृक्षो या चठ्ठानों से पैदा नही होते, किन्तु व्यक्तियों के चरित्र से निर्मित होते है, जो उसमें रहते है। उसके मतानुसार अच्छे जीवन की प्रप्ति ही राज्य तथा व्यक्ति के जीवन का महानतम उदेष्य है।

यदि न्याय का सिद्धान्त आदर्ष राज्य की आधारषिला है, तो शिक्षा योजना तथा साम्यवादी व्यवस्था आदर्ष राज्य के आधारभूत स्तम्भ है। उसने रिपब्लिक में शिक्षा को इतना अधिक महत्व दिया है, कि रूसो ने इसे राजनीति विषयक ग्रन्थ ने मानकर शिक्षा विषयक एक अत्यंत श्रेष्ठ ग्रन्थ माना हैं।

आदर्षराज्य में न्याय को बनाये रखने के लिए शिक्षा पद्धति के साथ- साथ प्लेटो ने एक नवीन सामाजिक व्यवस्था का भी चित्रण किया जिसे प्लेटो के साम्यवाद के सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। प्लेटो ने साम्यवादी योजना को दो भागो में विभाजित किया है - सम्पति का साम्यबाद परिवार अथवा स्त्रियों का साम्यवाद सम्पति का साम्यवाद में प्लेटो ने शासको और सैनिकों के लिए सम्पति का निषेध करता है। प्लेटो का कहना है, कि सम्पति एक बहुत बड़ा आकर्षण है, जो किसी भी व्यक्ति कों अपने पद से विचलित कर सकती हैं। सम्पति पर शासकों का व्यक्तिगत स्वामित्व समाप्त किया जाना चाहिए जिससे उसके मन और मस्तिष्क से सम्पति के प्रति मोह को मिटाया जा सकें।

प्लेटो ने निजी सम्पति का निषेध करने के साथ साथ उन्हे निजी परिवार का त्याग कर सारे राज्य को अपना वृहत परिवार मानने को कहा है। इसमें प्लेटो का उदे्ष्य है, कि शासन और सैनिक वर्ग कंचन के समान कामिनी के मोह से भी मुक्त होकर अपने कर्तव्यों का पालन करे। सम्पति की भाँति ही प्लेटों विवाह का भी उन्मूलन करता है। यहाँ भी उदे्ष्य है, कि पारिवारिक मोह से बचा जा सके। उसका कहना है, कि यदि शासक परिवार के प्रत्ति अनुरक्त होगे, तो वे राजकाज की ओर पूरा ध्यान नही देंगे।

प्लेटो न्याय को आत्मा के अन्तः करण को वस्तु मानता है। प्लेटो का कहना है, कि न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था में मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक माँग है। प्लेटो न्याय के दो रूपों का वर्णन करता है - व्यक्तिगत और सामाजिक। प्लेटो की धारणा थी कि मानवीय आत्मा में तीन तत्व या अंष विधमान है- इन्द्रिय तृष्णा, शोर्य और बुद्धि। प्लेटो का न्याय बाह्य जगत की वस्तु न होकर आंतरिक स्थिति है।

Advertisement
Advertisement

Related Post

Categories