14वें दलाई लामा - तेनजिन ग्यास्तो का जीवन परिचय

Tenzin Gyatso Dalai Lama Biography In Hindi, दलाई लामा Gelug स्कूल में बौद्ध धर्म के सबसे बड़े अनुनायी होते हैं जो की 1357–1419 में जे त्सोंग्खापा (Je Tsongkhapa) के द्वारा शुरू किया गया है। आज के दिन में 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यास्तो हैं। इनका पूरा नाम ल्हामो धोण्डुप (Lhamo Dondrub) है इनका जन्म 6 जुलाई, 1935 को हुआ था। इनके पिता का नाम चोएकयोंग त्सेरिंग (Choekyong Tsering) तथा माता का नाम डिकी त्सेरिंग (Diki Tsering) है। इनको पुरे विश्व भर में "Man of Peace" यानी की दुनिया भर में शांति फैलाने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। तेनजिन ग्यास्तो, दलाई लामा के पद पर सबसे ज्यादा दिन तक रहने वाले एक मात्र हैं बुद्ध अनुनायी हैं।

Tenzin Gyatso Biography
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श्री परम पूज्य दलाई लामा तेनजिन ग्यास्तो (Tenzin Gyatso) बौद्ध धर्म के अनुनायी होने के साथ-साथ तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं। तेनजिन ग्यास्तो, स्वयं को बहुत ही साधारण सा बुद्ध अनुनायी मानते हैं। उनका जन्म एक छोटे से गाँव तक्त्सेर, अम्दो उत्तरी तिब्बत में 6 जुलाई 1935 को एक किसान परिवार में हुआ था। 2 साल की उम्र में जब उनका नाम ल्हामो धोण्डुप (Lhamo Dondrub) कह कर बुलाया जाता था उसी समय उन्हें 13 वें दलाई लामा श्री थुबटेन ग्यास्तो (Thubten Gyatso) के पुनर्जन्म की मान्यता दे दी गयी थी।

दलाई लामा को अवलोकितेश्वर या चेंरेज़िग, बोधिसत्व और तिब्बत के संरक्षक संत के रूप में माना जाता है। बोदिसत्व वो व्यक्ति है जो अपने निर्वाण को स्थगित करके मानवता के लिए पुनर्जन्म को चुनता है। श्री परम पूज्य दलाई लामा - तेनजिन ग्यास्तो ने 6 साल की आयु में ही अपनी मठ की शिक्षा शुरू कर दी थी। उनकी शिक्षा के कुछ मुख्य विषय थे तर्कशास्त्र, तिब्बत की कला और संस्कृति, संस्कृत, औषधियाँ और बौद्ध तत्वज्ञान जो की आगे जा कर 5 भागों में विभाजित हुआ।

प्रज्नापरिमिता, मध्यमिका, विनय, अभिधर्म, परमानना और ज्ञान पद्धति शास्त्र। अन्य 5 विषय थे कविता, संगीत और ड्रामा, ज्योतिष विज्ञानं। वर्ष 1959, 23 साल की उम्र में, परम पावन श्री दलाई लामा - तेनजिन ग्यास्तो (Tenzin Gyatso) नें ल्हासा के जोखांग मंदिर में वार्षिक मोनलम प्रार्थना त्यौहार के दौरान अपना अंतिम परीक्षा दिया।वे होनोर्स में पास हुए और उनको गेशे ल्हारम्पा डिग्री से नवाज़ा गया जो की सबसे बड़े डिग्री के नाम से जाना जाता है जिसे बौद्ध तत्वविज्ञान के डॉक्टरेट उपाधि के समान माना जाता है।

वर्ष 1950 में श्री परम पूज्य दलाई लामा जी को तिब्बत पर चीन के आक्रमण करने के बाद पूर्ण राजनीतिक सत्ता ग्रहण करने के लिए आवाहन किया गया। 1954 में, वे माओत्से तुंग और अन्य चीनी नेताओं, देंग जियाओपिंग और चाउ एनलाई के साथ शांति वार्ता के लिए बीजिंग के लिए भी गए। लेकिन तब भी 1959 लहोस में चीनी सैनिकों के विद्रोह के कारण, परम पूज्य दलाई लामा जी को निर्वासन से बचने के लिए मजबूर किया गया। तब से वे धर्मशाला, उत्तर भारत में रह रहे हैं। चीन के इतनी क्रूर भावना के बाद भी वे अपने शत्रुओं के प्रति क्षमा भाव रखते हैं। चीन के आक्रमण के बाद, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन नें श्री परम पूज्य दलाई लामा जी के नेतृत्व में तिब्बत के सवालों पर सयुंक्त राष्ट्र से अपील की। महासभा नें 1959, 1961 और 1965 में तिब्बत पर तीन प्रस्तावों को अपनाया।

वे पिछले कई वर्षों से वह लोगों को शांति और प्रेम का संदेश देते आ रहे हैं। भारत में वह अपने देश की साहित्य, कला एवं चिकिस्ता संबंधी विरासत को जीवित रखना चाहते हैं। उन्होंने तिब्बत में शांति बनाये रखने के लिए 5 महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखे – 1. पुरे तिब्बत को एक शांति स्थल बनायें। 2. चीन की जनसंख्या स्थानातंरण की नीति जो तिब्बतियों के अस्तित्व के लिए खतरनाक है, उसको पूरी तरह से छोड़ दिया जाये। 3. तिब्बत के लोगों के लिए आधारभूत मानवीय अधिकार और प्रजातंत्रीय स्वतंत्रता के प्रति सम्मान की भावना रखा जाये। 4. तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण की पुनर्स्थापना और संरक्षण तथा चीन द्वारा आणविक शस्त्रों के निर्माण और परमाणु कूड़ादान के रूप में तिब्बत को काम में लाए जाने पर रोक। 5. तिब्बत के भविष्य की स्थिति और तिब्बतियों तथा चीनियों के आपसी संबंधों के विषय में गंभीर बातचीत की शुरुआत करना जरूरी।

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