तुलसी दास के दोहे

तुलसी दास का दोहा - Tulsidas Ke Dohe in Hindi, तुलसीदास हिन्दी साहित्य के आकाश के परम नक्षत्र, भक्तिकाल की सगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि है। तुलसीदास एक साथ कवि, भक्त तथा समाज सुधारक तीनों रूपों में मान्य है। श्रीराम को समर्पित ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस को समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है।

Tulsidas Ke Dohe Dohe - Couplets
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"दोहा"

"काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान॥"

"आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह॥"

"मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर
अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर॥"

"कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम।
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम॥"

"सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।
श्रीरघुबीर परायन जेहिं नर उपज बिनीत॥"

"मसकहि करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन।
अस बिचारि तजि संसय रामहि भजहिं प्रबीन॥"

"'तुलसी' किएं कुंसग थिति, होहिं दाहिने बाम।
कहि सुनि सुकुचिअ सूम खल, रत हरि संकंर नाम॥"

"बसि कुसंग चाह सुजनता, ताकी आस निरास।
तीरथहू को नाम भो, गया मगह के पास॥"

"सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर।
होहिं बिषय रत मंद मंद तर॥"

"काँच किरिच बदलें ते लेहीं।
कर ते डारि परस मनि देहीं॥"

"मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित विवेक॥"

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