चेत करो, अब चेत करो, चेतक की टाप सुनाई दी।
भागो-भागो, भाग चलो, भाले की नोक दिखाई दी।।
दौड़ाता अपना घोड़ा अरि, जो भागे बढ़ जाता था।
उछल मौत से पहले उसके, सिर पर वह चढ़ जाता था।।
लड़ते-लड़ते रख देता था, टाप कूदकर गैरों पर।
हो जाता था खड़ा कभी, अपने चंचल दो पैरों पर।।
आगे-आगे बढ़ता था वह, भूल न पीछे मुड़ता था।
बाज नहीं, खगराज नहीं, पर आसमान में उड़ता था।।
लड़ता था वह वाजि लगाकर, बाज़ी अपने प्राणों की।
करता था परवाह नहीं वह, भाला-बरछी-वाणों की।।
फाड़-फाड़कर कुंभस्थल, मदमस्त गजों को मर्दन कर।
दौड़ा, सिमटा, जमा, उड़ा, पहुँचा दुश्मन की गर्दन पर।।
‘चें’ तक अरि ने बोल दिया, चेतक के भीषण वारों से।
कभी न डरता था दुश्मन की, लहू भरी तलवारों से।।
उड़ा हवा के घोड़े पर, हो तो चेतक-सा घोड़ा हो।
ले ले विजय, मौत से लड़ ले, जिसका ऐसा घोड़ा हो।।