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एक बूँद - हिंदी कविता

ज्यों निकलकर बादलों की गोद से,
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी।

सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों चली।

देव! मेरे भाग्य में है क्या बता।
मैं बचूँगी या मिलूँगी धुल में?

या जलूँगी गिर अंगारे पर किसी,
या पहुचुंगी कमल के फूल में?

Ek Boond Poem Hindi Rhymes
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बह गई उस काल एक ऐसी हवा,
वह समुंदर ओर आई अनमनी।

एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला,
वह उसी में जा गिरी, मोती बनी।

लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते,
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।

किंतु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें,
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।

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