इस बरस की होली
कुछ याद आ रहा है।
बचपन की यादें मुझको
मन को हिला रहा है।
पापा के रंग प्यारे
मम्मी की बो मलाई
छोटी-छोटी पिचकारी
संग छोटे बहन-भाई।
होली की वो शरारत
राहों में खड़े होकर
पिचकरी में रंग भरना
दोस्तों पे रंग लगाकर
फिर रूठना और मनाना
उन छोटे-छोटे पल में
खुद को भूल जाना।
इस बरस की होली
कुछ याद आ रहा है।
रंगों के रंग में रंग कर
दो-चार बार नहाना
मम्मी-पापा का गुस्सा
फिर प्यार से मुस्काना
थे दो रूपये के छुट्टे
दौडकर दुकान जाना
दो रूपये के रंग में
खुद को भूल जाना
बचपन की वही होली
क्यों, याद आ रही है?