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ईमानदार वीर बालक

रमेश बहुत ही प्यारा बालक था। वह कक्षा दूसरी में पढ़ता। रमेश विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय त्यौहार मनाया जाने वाला था। रमेश  बहुत उत्साहित था इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए। रमेश को उसकी कक्षा अध्यापिका ने स्वतंत्रता दिवस की परेड में भाग लेने के लिए बोला था। उसके हर्ष का कोई ठिकाना नहीं था, वह खुशी-खुशी इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तैयारियां करने लगा।

स्वतंत्रता दिवस की होने वाली परेड में सभी साथियों के साथ पूर्व अभ्यास निरंतर करता रहा और अत्यंत उत्साह से भरा हुआ था। परेड वाले दिन जब वह स्कूल के लिए तैयार होने लगा तो रमेश ने अपने दादा जी को खोजा। दादाजी रमेश के साथ निरंतर विद्यालय जाया करते थे उसे पहुँचाने।

किंतु दादाजी नहीं मिले  मां से पूछा तो माँ  ने बताया दादाजी गांव गए हैं। वहां दादी की तबीयत खराब है , और हॉस्पिटल में है। पिताजी भी गए हुए हैं , अब मैं तुम्हें स्कूल पहुंचा कर गांव निकलूंगी। रमेश ने यह बात सुनी तो बहुत दुखी हुआ और वह स्वयं भी दादी के पास जाने के लिए जिद करने लगा।

Emanadaar Veer Balak Moral Stories
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इस पर उसकी मां रमेश  को अपने साथ लेकर गांव चली गई। जब वह कुछ दिन बाद विद्यालय पहुंचा वहां , प्रधानाचार्य ने उन सभी बालकों को बुलाया जिन्होंने परेड में भाग नहीं लिया था।  इस पर रमेश का नाम नहीं पुकारा गया , बाकी सभी विद्यार्थियों को उनके अभिभावक को लाने के लिए कहा गया।

रमेश ने सोचा कि मेरा नाम प्रधानाचार्य ने नहीं बोला लगता है वह भूल गए होंगे। रमेश  प्रधानाचार्य के ऑफिस में गया और उसने प्रधानाचार्य से कहा कि "मैं भी उस दिन परेड में नहीं आया था। मगर आपने मेरा नाम नहीं लिया क्या मुझे भी अपने माता-पिता को बुलाकर लाना है ?"

रमेश के इस सरल स्वभाव को देखकर प्रधानाचार्य खुशी हुए और उन्होंने रमेश से बताया कि तुम्हारे माता-पिता ने फोन करके तुम्हारे स्कूल ना आने का कारण मुझे पहले ही बता दिया था। तुम्हारी इमानदारी से मुझे खुशी हुई। तुम अच्छे से पढ़ाई करो और अगली बार परेड में निश्चित रूप से भाग लेना।

नैतिक शिक्षा - सदैव सत्य बोलना चाहिए और सत्य का साथ देना चाहिए। व्यक्ति का स्वभाव ही उस व्यक्ति का परिचय है।

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