बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना

Beti Bachao Beti Padhao Schemes in Hindi, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना महिलाओं एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और परिवार कल्याण मंत्रालय एवं मानव संसाधन विकास की एक संयुक्त पहल के रूप में समन्वित और अभिसरित प्रयासों के अंतर्गत बालिकाओं को संरक्षण और सशक्त करने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को की गई है और जिसे निम्न लिंगानुपात वाले 100 जिलों में प्रारंभ किया गया है। सभी राज्यों / संघ शासित क्षेत्रों को कवर 2011 की जनगणना के अनुसार निम्न बाल लिंगानुपात के आधार पर प्रत्येक राज्य में कम से कम एक ज़िले के साथ 100 जिलों का एक पायलट जिले के रूप में चयन किया गया है।

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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (Beti Bachao Beti Padhao Yojana) आज भले ही सरकार भी चला रही है लेकिन इस बाबत व्यक्तिगत प्रयास भी कम महत्त्व पूर्ण नहीं है इसी कड़ी में एच एन मीणा जो की भारतीय राजस्व सेवा के 2004 बैच के अधिकारी है और उनकी पत्नी डॉ हेमलता मीणा पिछले 8 वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या व् महिलाओं के अधिकारों के लिए देश भर में आंदोलन चला रहे है। हिंदुस्तान की आजादी के बाद की पहली जनगणना जो सन् 1951 में हुई, के आंकड़ो के अनुसार प्रति हज़ार पुरुषो पर 946 महिलाएं थी उस समय, लेकिन अफ़सोस आजादी के दशको बाद भी यह आंकड़ा प्रति हज़ार पुरुषो पर 940 महिलाओं पर ही सिमट के रह गया है। देश में सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 3.73 करोड़ महिलाएं कम है, कुल देश की जनसँख्या 121 करोड़ में से। देश में 0-6 आयुवर्ग में लिंगानुपात सन् 1991 की जनगणना के आकड़ो के अनुसार 945 था जो घटकर सन् 2001 की जनगणना में 927 पर आ गया और यह सन् 2011की जनगणना के आकड़ो के अनुसार 918 पर आ गया।यह आंकड़े देश में लिंगानुपात की विषम होती चिंताजनक स्तिथि को दर्शाते है।यदि हालात यही रहे तो आने वाले वर्षो में स्थिति और चिंताजनक हो सकती है।

कई वर्षो में अब तक इन्होंने इस कार्यक्रम को बिना किसी से वित्तीय सहयोग के चलाया है विभिन्न रूपों में। मीणा दंपति कहते है कि जब तक देश से यह लिंगानुपात की खाई मिट नहीं जाती उनका हर स्तर पर यह प्रयास सरकारी नौकरी की व्यस्तताओं के बीच भी रविवार आदि छुट्टी के दिनों में जारी रहेगा बेटियो को बचाने के लिए। आजादी के बाद भारत ने सभी क्षेत्रो में खूब विकास किया वो चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो चाहे स्वास्थ्य का, चाहे विज्ञान हो चाहे अर्थव्यवस्था का, लेकिन दुर्भाग्य से स्त्री -पुरुष के लिंगानुपात को बराबरी पर नहीं ला पाये कोई भी प्रयास भारत में । एच एन मीणा को लगता है यह अंतर तब तक नहीं पाटा जा सकता है जब तक की हमारी स्त्रियों के प्रति सोच में आमूलचूल परिवर्तन नहीं आ जाए।इसके लिए हमें एक ऐसे आंदोलन की जरूरत है जो लोगो की सोच में एक हद तक ऐसा परिवर्तन ला पाये जिसके आईने में हमें लड़का लड़की में भेद नज़र नहीं आये।इसी सामाजिक सोच में परिवर्तन की दिशा में एक ईमानदार और अभिनव प्रयास बेटियों को बचाने की दिशा में कर रहे है मीणा दंपति "पहियों पर मुहीम " चलाकर जिसमे हम पहले चरण में 10000 हज़ार लंबी दूरी पर राष्ट्रिय राजमार्गो पर चलने वाले ट्रको पर बेटी बचाने व् बेटी पढाने का सन्देश चस्पा कर रहे है ट्रक चालको की सहमति से।यह सब भी बिना किसी लोभ और लालच व् बिना किसी संस्था के सहयोग से कर रहें है देश की बेटियों के नाम, लोभ है तो सिर्फ एक कि, हर बेटी का जीवन बचना चाहिए उसे माँ के गर्भ में ही नहीं मारा जाना चाहियें।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (Beti Bachao Beti Padhao Yojana) के उद्देश्य :-

  • पक्षपाती लिंग चुनाव की प्रक्रिया का उन्मूलन।
  • बालिकाओं का अस्तित्व और सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • बालिकाओं की शिक्षा सुनिश्चित करना।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (Beti Bachao Beti Padhao Yojana) की रणनीतियाँ :-

बालिका और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक आंदोलन और समान मूल्य को बढ़ावा देने के लिए जागरुकता अभियान का कार्यान्वय करना। इस मुद्दे को सार्वजनिक विमर्श का विषय बनाना और उसे संशोधित करने रहना सुशासन का पैमाना बनेगा। निम्न लिंगानुपात वाले जिलों की पहचान कर ध्यान देते हुए गहन और एकीकृत कार्रवाई करना। सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में स्थानीय महिला संगठनों की सहभागिता लेते हुए पंचायती राज्य संस्थाओं स्थानीय निकायों और जमीनी स्तर पर जुड़े कार्यकर्ताओं को प्रेरित एवं प्रशिक्षित करते हुए सामाजिक परिवर्तन के प्रेरक की भूमिका में ढालना जमीनी स्तर पर अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-संस्थागत समायोजन को सक्षम करना।

देश में स्त्री पुरुष जनसंख्या के हिसाब से भी बराबरी पर नहीं है। भारत सरकार और राज्य सरकारो ने अपने अपने स्तर पर इस स्तिथि से निपटने के लिए कई प्रकार से प्रयास किये है।लेकिन पिछले 20 वर्षो का देश के लिंगानुपात में महिलाओं की संख्या कम होने के कारण और उनसे निपटने के अब तक के किये गए सम्मलित प्रयासों का एच एन मीणा का अध्ययन यह कहता है कि जब तक हम सब इस घृणित बुराई के खिलाफ खड़े नही होंगे इससे मुक्ति संभव प्रतीत नहीं होती और इसके लिए हमें देश भर में आंदोलन चलाने की जरूरत है। देश की सरकार, बहुत सारे सरकारी गैर सरकारी संगठन और लोगो के व्यक्तिगत प्रयास जारी है। एच एन मीणा व् डॉ हेमलता मीणा दोनों पति -पत्नी इस पुनीत कार्य में कई वर्षो से लगे है हमा हिंदुस्तान की आजादी के बाद की पहली जनगणना जो सन् 1951 में हुई, के आंकड़ो के अनुसार प्रति हज़ार पुरुषो पर 946 महिलाएं थी उस समय, लेकिन अफ़सोस आजादी के दशको बाद भी यह आंकड़ा प्रति हज़ार पुरुषो पर 940 महिलाओं पर ही सिमट के रह गया है।

देश में सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 3.73 करोड़ महिलाएं कम है, कुल देश की जनसँख्या 121 करोड़ में से। देश में 0-6 आयुवर्ग में लिंगानुपात सन् 1991 की जनगणना के आकड़ो के अनुसार 945 था जो घटकर सन् 2001 की जनगणना में 927 पर आ गया और यह सन् 2011की जनगणना के आकड़ो के अनुसार 918 पर आ गया। यह आंकड़े देश में लिंगानुपात की विषम होती चिंताजनक स्तिथि को दर्शाते है।यदि हालात यही रहे तो आने वाले वर्षो में स्थिति और चिंताजनक हो सकती है। देश में स्त्री पुरुष जनसंख्या के हिसाब से भी बराबरी पर नहीं है। भारत सरकार और राज्य सरकारो ने अपने अपने स्तर पर इस स्तिथि से निपटने के लिए कई प्रकार से प्रयास किये है।लेकिन पिछले 20 वर्षो का देश के लिंगानुपात में महिलाओं की संख्या कम होने के कारण और उनसे निपटने के अब तक के किये गए सम्मलित प्रयासों का मेरा अध्ययन यह कहता है कि जब तक हम सब इस घृणित बुराई के खिलाफ खड़े नही होंगे इससे मुक्ति संभव प्रतीत नहीं होती और इसके लिए हमें देश भर में आंदोलन चलाने की जरूरत है। देश की सरकार, बहुत सारे सरकारी गैर सरकारी संगठन और लोगो के व्यक्तिगत प्रयास जारी है। एच एन मीणा एवं उनकी पत्नी डॉ हेमलता मीणा दोनों पति -पत्नी इस पुनीत कार्य में कई वर्षो से अपनी श्रद्धानुसार, किसी से कोई चंदा उगाई के बिना सिर्फ अपने वेतन में से एक हिस्सा खर्चा करके बेटियों को बचाने की दिशा में लोगो को जागरूक करने की कोशिश कर रहे है।

नोट :- आपको ये पोस्ट कैसी लगी, कमेंट्स बॉक्स में जरूर लिखे और शेयर करें, धन्यवाद...

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