Laxmi Mata Chalisa In Hindi, लक्ष्मी हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वो भगवान विष्णु की पत्नी हैं और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी जी की नित्य पूजा करने से मनुष्य के जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती है। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है। जिस पर यह अनुग्रह उतरता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता। स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी 'श्री' कहा गया है। यह सद्गुण जहाँ होंगे, वहाँ दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी।
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो ह्रदय में बास।
मनोकामना सिद्ध करि, पुरवहु मेरी आस॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं।
सब विधि करो सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरो तोही।
ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥
जै जै जै जननी जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो घट घट की वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दिनन की तुम हो हितकारी॥
बिनावो नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करो जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौ तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीर सिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बन दासी॥
जब जब जन्म प्रभु जहां लीन्हा। रूप बदल तंह सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो ह्रदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहिं आनि। कहॅ तक महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम बचन करै सेवकाई। मण इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भॅाति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई न होई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो यह पढ़े और पढावे। ध्यान लगाकर सुन सुनावै॥
ताको कोई न रोग सतावे। पुत्र आदि धन सम्पति पावै॥
पुत्रहिन अरु सम्पतिहिना। अन्ध बधिर कोढी़ अति दिना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करै गोरीशा॥
सुख सम्पति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नहीं॥
बहुविधि क्या मै करौ बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हारो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूँ नाहीं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहिं दीजै॥
भूल चुक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अक्षत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहि ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
कहि प्रकार मै करौ बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥
त्राहि त्राहि दुःख हरिणी, हरो बेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो दुश्मन का नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
नोट :- आपको ये पोस्ट कैसी लगी, कमेंट्स बॉक्स में जरूर लिखे और शेयर करें, धन्यवाद।