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तेजस लड़ाकू विमान

तेजस (Tejas Fighter Jet) भारत द्वारा विकसित किया जा रहा एक हल्का व कई तरह की भूमिकाओं वाला जेट लड़ाकू विमान है। यह हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा विकसित एक सीट और एक जेट इंजन वाला, अनेक भूमिकाओं को निभाने में सक्षम एक हल्का युद्धक विमान है। यह बिना पूँछ का, कम्पाउण्ड-डेल्टा पंख वाला विमान है। इसका विकास 'हल्का युद्धक विमान' (LCA) नामक कार्यक्रम के अन्तर्गत हुआ है जो 1980 के दशक में शुरू हुआ था। विमान का आधिकारिक नाम तेजस 4 मई 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रखा था। यह विमान पुराने पड़ रहे मिग-21 का स्थान लेगा।

Tejas Fighter Jet General Knowledge
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एलसीए कार्यक्रम 1983 में दो प्राथमिक उद्देश्यों के लिए शुरू किया गया था। प्रमुख और सबसे स्पष्ट लक्ष्य भारत के पुराने पड़ते जा रहे मिकोयान-गुरेविच मिग-२१ की जगह लेने वाले विमान का विकास करना था। एलसीए के कार्यक्रम का अन्य मुख्य उद्देश्य भारत के घरेलू एयरोस्पेस उद्योग की चौतरफा उन्नति के वाहक के रूप में कार्य करना था। एलसीए के कार्यक्रम के प्रबंधन के लिए 1984 में वैमानिकी विकास एजेंसी (ADA) की स्थापना की गयी। तेजस को अक्सर हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) का उत्पाद कहा जाता रहा है, पर तेजस् के विकास की जिम्मेदारी वास्तव में वैमानिकी विकास एजेंसी (ADA) की है।

एलसीए के लिए भारत सरकार की "आत्मनिर्भरता" के लक्ष्य में तीन सबसे परिष्कृत और सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण प्रणालियां- फ्लाई बाइ वायर (FBW) उड़ान नियंत्रण प्रणाली (FCS), बहु आयामी पल्स-डॉपलर (ध्वनि व प्रकाश तरंगों को मापने वाला) रडार और आफ्टर बर्निंग टर्बो फैन इंजन शामिल हैं। एलसीए संरचना को 1990 में अंतिम रूप दिया गया और "रिलैक्स स्टेटिक स्टेबिलिटी" (RSS) के साथ यह एक छोटे डेल्टा पंख वाली मशीन के रूप में था, जिससे कि युद्ध कौशल में भूमिका बढ़ाई जा सके।

एक सरकारी समीक्षा समिति जिसमे एक आम राय यह दी गयी कि भारत के पास परियोजना शुरू करने के लिए बुनियादी ढांचे, सुविधाओं और प्रौद्योगिकी के अधिकतर क्षेत्रों में अधिक पर्याप्तता है। हालांकि, दूरदर्शिता के एक कदम के रूप में यह निर्णय लिया गया कि कार्यक्रम के पूर्ण पैमाने पर इंजीनियरिंग के विकास (FSED) के स्तर को दो चरणों में आगे बढ़ना होगा।

चरण-एक इसमें दो प्रौद्योगिकी प्रदर्शक विमानों TD-1 और TD-2 की संरचना, विकास और परीक्षण और एक संरचनात्मक नमूना परीक्षण  एयरफ्रेम का गठन शामिल होंगे और TD विमान के सफल परीक्षण के बाद ही भारत सरकार एलसीए संरचना को अपना पूरा समर्थन देगी, इसके बाद दो प्रोटोटाइप वाहनों PV-1 और PV-2 का निर्माण और विमान के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और परीक्षण सुविधाओं का निर्माण शुरू होगा।

चरण-1 1990 में शुरू किया और HAL ने 1991 के मध्य में प्रौद्योगिकी प्रदर्शनों पर काम शुरू कर दिया, हालांकि, वित्तीय संकट के कारण अप्रैल 1993 तक पूर्ण पैमाने पर धन अधिकृत नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप FSED के चरण-1 का काम 1 जून से शुरू हुआ। पहला प्रौद्योगिकी प्रदर्शक विमान, TD-1, 17 नवम्बर 1995 को पूरा हुआ और उसके बाद 17 नवम्बर 1998 में TD-2 पूरा हुआ, लेकिन कई संरचनात्मक चिन्ताओं और उड़ान नियंत्रण प्रणाली के विकास में परेशानी के कारण ये कई साल तक जमीन पर ही रखा गया।

दूसरे चरण में तीन और प्रोटोटाइप PV-3((उत्पादन संस्करण के रूप में), PV-4 (नौसेना संस्करण के रूप में) और PV-5 (ट्रेनर उपादानों के रूप में) का निर्माण और विभिन्न केंद्रों पर विकास व परीक्षण की सुविधाएं बहाल करना शामिल होगा।

1970 और 80 के दशक में, विशेष रूप से 1974 के पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद प्रौद्योगिकी मिलने में मनाही के कारण भारत एक मुश्किल हालात में फंस गया था, खासकर अमेरिका ने भारत को कोई भी ‘संवेदनशील प्रौद्योगिकी’ हासिल करने से वंचित कर दिया था, इसके अलावा, अमेरिका ने मई 1998 में परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद भारत पर प्रतिबंध भी लगा दिए थे। पहला विमान 1994 तक लाने की योजना थी, हालांकि, एलसीए का पहला प्रोटोटाइप परियोजना शुरू होने के 18 साल बाद यानी 2001 में ही उड़ान भर सका।

जनवरी 2001 को एलसीए की पहली उड़ान TD द्वारा बंगलूर के पास बनाये गये राष्ट्रीय उड़ान परीक्षण केंद्र (NFTC) से हुई, इसके बाद 1 अगस्त 2003 को इसकी पहली सफल सुपरसोनिक उड़ान हुई, सितंबर 2001 में TD-2 को अपनी पहली उड़ान भरने का समय मिला, देरी का सबसे अहम कारण यह था कि भारत अपना खुद का जेट इंजन विकसित करना चाहता था लेकिन वह अब भी ऐसा करने में सक्षम नहीं हो पाया है।

प्रारंभ में, प्रोटोटाइप विमान को जनरल इलेक्ट्रिक F404- GE-F2J3 आफ्टरबर्निंग टर्बोफैन इंजन से लैस करने का निर्णय लिया गया था। तेजस् विमानों के शुरूआती बैच कम शक्ति वाले जनरल इलेक्ट्रिक F404 इंजनों द्वारा संचालित होंगे, जो 80-85 किलोन्यूटन की ताकत उत्पन्न करते हैं। बाद में यूरोजेट EJ200 और GE एफ-414 इंजन भारतीय वायुसेना की आवश्यकताओं को पूरा करेंगे क्योंकि वे 95-100 किलोन्यूटन ताकत उत्पन्न करते हैं। भारतीय वायु सेना के सूत्रों की ओर से यह भी कहा गया कि एयरफ्रेम की संरचना इस तरह से की जायेगी कि इसमें भारी इंजन लगाये जा सकें।

दिसंबर 2013 में तेजस को इनिशियल ऑपरेशनल क्लीयरेंस मिला और 2019 में आईएएफ को फाइनल ऑपरेशनल क्लीयरेंस के साथ पहला विमान दिया गया।

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