दानव समाज में अरुण पड़ा, जल जन्तु बीच हो वरुण पड़ा, इस तरह भभकता था राणा, मानो सर्पो में गरुड पड़ा। हय रुण्ड कतर, गज मुण्ड पाछ, अरि व्यूह गले पर फिरती थी, तलवार वीर की तडप तडप, क्षण-क्षण बिजली गिरती थी। राणा कर ने सिर काट-काट, दे दिए कपाल कपाली की, शोणित की मदिरा पिला पिला, कर दिया तुष्ट रण काली को। पर दिन भर लड़ने से तन में, चल रहा पसीना था तर-तर, अविरल . . . Read More . . .
मैं तो वहीँ खिलौना लूँगा, मचल गया दीना का लाल। खेल रहा था जिसको लेकर, राजकुमार उछल उछल। व्यथित हो उठी माँ बेचारी, या स्वर्ण-निर्मित वह तो खेल इसी से लाल नहीं है, राजा के घर भी यह तो। राजा के घर, नहीं नहीं माँ, तू मुझको बहकती है, इस मिट्टी से खेलेगा क्या, राजपुत्र तो ही कह तो? . . . Read More . . .
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बंध प्यारी को इठलाऊँ, चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊँ, . . . Read More . . .
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। वीरों को हरषाने वाला, प्रेम-सुधा बरसाने वाला। मातृभूमि का तन-मन सारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा। . . . Read More . . .
अगर कहीं मिलती बंदूक उसको मै करता दो टूक, नली निकाल, बना पिचकारी रंग देता यह दुनिया सारी। कौआ बगुला जैसा होता बगुला होता मोर, लाल-लाल हो जाते तोते होते हरे चकोर। . . . Read More . . .