हवा हूँ, हवा मैं, बसंती हवा हूँ, सुनो बात मेरी, अनोखी हवा हूँ। बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्त-मौला, नहीं कुछ फिकर है, बड़ी ही निडर हूँ। जिधर चाहती हूँ, उधर घुमती हूँ, मुसाफ़िर अजब हूँ। न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा, न इच्छा किसी की, न आशा किसी की, न प्रेमी न दुश्मन। . . . Read More . . .
अब जागो जीवन के प्रभात ! वसुधा पर ओस बने बिखरे हिमकण आँसू जो क्षोभ भरे ऊषा बटोरती अरुण गात अब जागो जीवन के प्रभात ! . . . Read More . . .
सूरज चलता रहता हरदम, कभी न खाता, कभी न पीता। कौन दवा है जिसको खाकर कभी न मरता, रहता जीता।। दिन भर तो वह चमका करता किन्तु शाम को छिप जाता है। धरती पर और आसमान में तब अँधियारा छा जाता है।। . . . Read More . . .
वो उड़ती पतंग तो देखो, खुले आसमान में बेखबर, आवारा अल्हड़, कभी इधर कभी उधर, उसे क्या खबर, की उसके आसमान के परे, आसमान कई और भी है, उस जैसे कई और भी है, लेकिन उसे इसकी फिक्र भी कहाँ, उसे तो बस उड़ना है। . . . Read More . . .
माँ की ममता करुणा न्यारी, जैसे दया की चादर। शक्ति देती नित हम सबको, बन अमृत की गागर। साया बन कर साथ निभाती, चोट न लगने देती। पीड़ा अपने ऊपर ले लेती, सदा सदा सुख देती। . . . Read More . . .