सखि, वसन्त आया। भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया। किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका, मधुप-वृन्द बन्दी पिक-स्वर नभ सरसाया। . . . Read More . . .
मैंने हँसना सीखा है, मैं नहीं जानती रोना, बरसा करता पल-पल पर, मेरे जीवन में सोना। मैं अब तक जान न पाई, कैसी होती है पीडा, हँस-हँस जीवन में, कैसे करती है चिंता क्रिडा। . . . Read More . . .
कर रहे प्रतीक्षा किसकी हैं, झिलमिल-झिलमिल तारे? धीमे प्रकाश में कैसे तुम, चमक रहे मन मारे।। अपलक आँखों से कह दो, किस ओर निहारा करते? किस प्रेयसि पर तुम अपनी, मुक्तावलि वारा करते? करते हो अमिट प्रतीक्षा, तुम कभी न विचलित होते। नीरव रजनी अंचल में, तुम कभी न छिप कर सोते।। . . . Read More . . .
मेरे भोले मूर्ख हृदय ने कभी न इस पर किया विचार। विधि ने लिखी भाल पर मेरे सुख की घड़ियाँ दो ही चार॥ छलती रही सदा ही मृगतृष्णा सी आशा मतवाली। सदा लुभाया जीवन साकी ने दिखला रीती प्याली॥ . . . Read More . . .
देखो कोयल काली है पर मीठी है इसकी बोली, इसने ही तो कूक कूक कर आमों में मिश्री घोली। कोयल कोयल सच बतलाना क्या संदेसा लायी हो, बहुत दिनों के बाद आज फिर इस डाली पर आई हो। क्या गाती हो किसे बुलाती बतला दो कोयल रानी, प्यासी धरती देख मांगती हो क्या मेघों से पानी? . . . Read More . . .