Advertisement

महावीर जयंती

महावीर जयंती पर्व, Mahavir Jayanti Festival In Hindi, महावीर जयंती (महावीर जन्म कल्याणक) चैत्र शुक्ल 13 को मनाया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के उपलक्ष में मनाया जाता है। यह जैनों का सबसे प्रमुख पर्व है। जैन समाज द्वारा मनाए जाने वाले इस त्योहार को महावीर जयंती के साथ साथ महावीर जन्म कल्याणक नाम से भी जानते है। भगवान महावीर स्वामी का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व कुंडग्राम (बिहार), भारत मे हुआ था। जन्म से पूर्व तीर्थंकर महावीर की माता त्रिशला ने 16 स्वप्न देखे थे जिनका फल राजा सिद्धार्थ ने बतलाया था।

Mahavir Jayanti Indian Festival
Advertisement

जैन ग्रन्थों के अनुसार जन्म के बाद देवों के मुखिया, इन्द्र ने सुमेरु पर्वंत पर ले जाकर बालक का क्षीर सागर के जल से अभिषेक किया था। इसे ही जन्म कल्याणक कहते है। हर तीर्थंकर के जीवन में पंचकल्याणक मनाए जाते है। इस महोत्सव पर जैन मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है। भारत में कई जगहों पर जैनों द्वारा अहिंसा रैली निकाली जाती है। इस अवसर पर गरीब एवं जरुरतमंदों को दान दिया जाता है।

महावीर जयंती के दिन हर तरह के जैन दिगम्बर, श्वेताम्बर आदि एक साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते है। भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप मे मनाए जाने वाले इस त्योहार मे पूरे भारत मे सरकारी छुट्टी घोषित की जाती है।

जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर का जीवन उनके जन्म के ढाई हजार साल भी उनके लाखों अनुयायियों के साथ ही पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ा रहा है। पंचशील सिद्धान्त के प्रर्वतक और जैन धर्म के चौबिसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के प्रमुख ध्वजवाहकों में से एक हैं। जैन ग्रंथों के अनुसार, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के मोक्ष प्राप्ति के बाद 298 वर्ष बाद महावीर स्वामी का जन्म ऐसे युग में हुआ, जहां पशु-बलि, हिंसा और जाति-पाति के भेदभाव का अंधविश्वास था।

भगवान महावीर की माता का नाम महारानी त्रिशला और पिता का नाम महाराज सिद्धार्थ था। भगवान महावीर कई नामो से जाने गए उनके कुछ प्रमुख नाम वर्धमान, महावीर, सन्मति, श्रमण आदि हैं। बचपन से ही महावीर तेजस्वी और साहसी थे। महावीर स्वामी के भाई नंदिवर्धन और बहन सुदर्शना थी। महावीर स्वामी अन्तर्मुखी स्वभाव के थे। शुरुवात से ही उन्हे संसार के भोगो मे कोई रुचि नहीं थी परन्तु शिक्षा पूरी होने के बाद इनके माता-पिता ने इनका विवाह राजकुमारी यशोदा के साथ किया, बाद में उन्हें एक पुत्री प्रियदर्शना की प्राप्ति हुई, जिसका विवाह जमली से हुआ।

महावीर स्वामी के जन्म के समय क्षत्रियकुण्ड गाव मे दस दिनो तक उत्सव मनाया गया। सारे मित्रो भाई बंधुओ को आमंत्रित किया गया, तथा उनका खूब सत्कार किया गया। राजा सिद्धार्थ का कहना था की जब से महावीर स्वामी का जन्म उनके परिवार मे हुआ है, तब से उनके धन धान्य कोष भंडार बल आदि सभी राजकीय साधनो मे बहुत वृध्दी हुई, तो उन्होने सबकी सहमति से अपने पुत्र का नाम वर्ध्दमान रखा।

महावीर स्वामी के माता पिता की मृत्यु के पश्चात उनके मन मे वैराग्य लेने की इच्छा जागृत हुई, परंतु जब उन्होने इसके लिए अपने बड़े भाई से आज्ञा मांगी तो उन्होने अपने भाई से कुछ समय रुकने का आग्रह किया। तब महावीर स्वामी जी ने अपने भाई की आज्ञा का मान रखते हुये 2 वर्ष पश्चात 30 वर्ष की आयु मे वैराग्य लिया। इतनी कम आयु में घर का त्याग कर "केशलोच" के साथ जंगल में रहने लगे। वहां उन्हें 12 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्व वृक्ष के नीचे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ।

इसके बाद उन्हें "केवलिन" नाम से जाना गया तथा उनके उपदेश चारों और फैलने लगे। बडे-बडे राजा महावीर स्वामी के अनुयायी बने उनमें से बिम्बिसार भी एक थे। 30 वर्ष तक महावीर स्वामी ने त्याग, प्रेम और अहिंसा का संदेश फैलाया और बाद में वे जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर बनें और विश्व के श्रेष्ठ महात्माओं में शुमार हुए। तीस वर्ष की आयु मे महावीर स्वामी ने पूर्ण संयम रखकर श्रमण बन गये, तथा दीक्षा लेते ही उन्हे मन पर्याय का ज्ञान हो गया। दीक्षा लेने के बाद महावीर स्वामी जी ने बहुत कठिन तापस्या की।

भगवान महावीर ने अहिंसा को जैन धर्म का आधार बनाया। उन्होंने तत्कालीन हिन्दु समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था का विरोध किया और सबको समान मानने पर जोर दिया। उन्होंने जियो और ​जीने दो के सिद्धान्त पर जोर दिया। सबको एक समान नजर में देखने वाले भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह के साक्षात मूर्ति थे। वे किसी को भी कोई दु:ख नहीं देना चाहते थे। भगवान महावीर ने अहिंसा, तप, संयम, पाच महाव्रत, पाच समिति, तीन गुप्ती, अनेकान्त, अपरिग्रह एवं आत्मवाद का संदेश दिया। महावीर स्वामी जी ने यज्ञ के नाम पर होने वाली पशु-पक्षी तथा नर की बाली का पूर्ण रूप से विरोध किया और सभी जाती और धर्म के लोगो को धर्म पालन का अधिकार बतलाया। महावीर स्वामी जी ने उस समय जाती-पाति और लिंग भेद को मिटाने के लिए उपदेश दिये।

जैन धर्म के अनुयायियों के लिए उन्होंने पांच व्रत दिए जिसमें अहिंसा,अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह बताया गयाअपनी ​सभी इंन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेने की वजह से वे जितेन्द्रिय या "जिन" कहलाए। "जिन" से ही जैन धर्म को अपना नाम मिला, जैन धर्म के गुरूओं के अनुसार भगवान महावीर के कुल 11 गणधर थे, जिनमें गौतम स्वामी पहले गणधर थे

भगवान महावीन ने 527 ईसा पूर्व कार्तिक कृष्णा द्वितीया तिथि को अपनी देह का त्याग कर किया। देह त्याग के समय उनकी आयू 72 वर्ष की थी। बिहार के पावापूरी जहां उन्होंने अपनी देह को छोड़ा, जैन अनुयायियों के लिए यह पवित्र स्थल की तरह पूजित किया जाता है। भगवान महावीर की मृत्यु के दो सौ साल बाद, जैन धर्म श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों में बंट गया।

दिगम्बर सम्प्रदाय के जैन संत वस्त्रों का त्याग कर देते हैं इसलिए दिगम्बर कहलाते हैं जबकि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के संत श्वेत वस्त्र धारण करते हैं।

भगवान महावीर द्वारा दिए गए पंच​शील सिद्धान्त ही जैन धर्म का आधार बने है। इस सिद्धान्त को अपना कर ही एक अनुयायी सच्चा जैन अनुयायी बन सकता है. सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को पंचशील कहा जाता है। भगवान महावीर ने सत्य को महान बताया है। उनके अनुसार, सत्य इस दुनिया में सबसे शक्तिशाली है।

नोट :- आपको ये पोस्ट कैसी लगी, कमेंट्स बॉक्स में जरूर लिखे और शेयर करें, धन्यवाद।

Advertisement
Advertisement

Related Post

Categories