माँ दुर्गा पूजन विधि, Maa Durga Pooja Vidhi in Hindi, चैत्र और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को माँ दुर्गा जी की पूजा करने का विधान है। आश्विन मास की अष्टमी तो पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन समस्त उपचारों से देवी दुर्गा की पूजा करने का विधान है। माँ दुर्गा की आराधना के कारण मां की करुणा, दया, स्नेह का भाव किसी भी भक्त पर सहज ही हो जाता है। ये कभी भी अपने भक्तों को किसी भी तरह से दुखी नहीं देख सकती है। उनका आशीर्वाद भी इस तरह से मिलता है, जिससे साधक को किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती है। और वह स्वयं सर्वशक्तिमान हो जाता है।
माँ दुर्गा की प्रसन्नता के लिए कभी भी उपासना की जा सकती है, क्योंकि शास्त्रों में चंडी हवन के लिए किसी भी मुहूर्त की अनिवार्यता नहीं है। नवरात्रि में इस आराधना का विशेष महत्व है। इस समय के तप का फल कई गुना व बहुत शीघ्र मिलता है। इस फल के कारण ही इसे कामदूधा काल भी कहा जाता है। देवी या देवता की प्रसन्नता के लिए पंचांग साधन का प्रयोग करना चाहिए। पंचांग साधन में पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम और स्रोत हैं पटल का शरीर, पद्धति को शिर, कवच को नेत्र, सहस्त्रनाम को मुख तथा स्रोत को जिह्वा कहा जाता है।
इन सब की साधना से साधक देव तुल्य हो जाता है। सहस्त्रनाम में देवी के एक हजार नामों की सूची है। इसमें उनके गुण व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। इन नामों से हवन करने का भी विधान है। इसके अंतर्गत नाम के पश्चात नमः लगाकर स्वाहा लगाया जाता है। हवन की सामग्री के अनुसार उस फल की प्राप्ति होती है। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से पूजा अर्चना करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है। सहस्त्रार्चन के लिए देवी की सहस्त्र नामावली जो कि बाजार में आसानी से मिल जाती है की आवश्यकता पड़ती है।
इस नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर भी देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए। जिस वस्तु से पूजा-अर्चना करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार होना चाहिए। पूजा-अर्चना में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुमकुम के रंग, चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि पूजा-अर्चना एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।
पूजा की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करना चाहिए। पूजा के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य लगाना चाहिए। दीपक इस तरह होना चाहिए कि पूरी पूजा प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहे। पूजा करने वाले को स्नानादि आदि से शुद्ध होकर धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर पूजा करनी चाहिए।
इस साधना का में आसन पर बैठना चाहिए तथा पूर्ण होने के पूर्व उसका त्याग किसी भी स्थिति में नहीं करना चाहिए। पूजा के उपयोग में प्रयुक्त सामग्री पूजा के उपरांत किसी साधन, ब्राह्मण, मंदिर में देनी चाहिए। कुमकुम से भी पूजा की जा सकती हैं। इसमें नमः के पश्चात बहुत थोड़ा कुमकुम देवी पर अनामिका-मध्यमा व अंगूठे का उपयोग करके चुटकी से चढ़ाना चाहिए। बाद में उस कुमकुम से स्वयं को या भक्तों को तिलक के लिए प्रसाद के रूप में दे सकते हैं। सहस्त्रार्चन नवरात्र काल में एक बार कम से कम अवश्य करना चाहिए। इस पूजा में आपकी आराध्य देवी का पूजन अधिक लाभकारी है। पूजन प्रयोग बहुत प्रभावशाली, सात्विक व सिद्धिदायक होने से इसे पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से करना चाहिए।
नोट :- आपको ये पोस्ट कैसी लगी, कमेंट्स बॉक्स में जरूर लिखे और शेयर करें, धन्यवाद।