सखि, वसन्त आया, भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया। किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका, मधुप-वृन्द बन्दी-पिक-स्वर नभ सरसाया। . . . Read More . . .
काली घटा छाई है। लेकर साथ अपने यह, ढेर सारी खुशियां लायी है, ठंडी ठंडी सी हवा यह, बहती कहती चली आ रही है, काली घटा छाई है। कोई आज बरसों बाद खुश हुआ, तो कोई आज खुशी से पकवान बना रहा, बच्चों की टोली यह, कभी छत तो कभी गलियों में, किलकारियां सीटी लगा रही, काली घटा छाई है। . . . Read More . . .
धर्माधिराज का ज्येष्ठ बनूँ? भारत में सबसे श्रेष्ठ बनूँ? कुल की पोशाक पहन करके, सिर उठा चलूँ कुछ तन करके? इस झूठ-मूठ में रस क्या है? केशव! यह सुयश सुयश क्या है? सिर पर कुलीनता का टीका, भीतर जीवन का रस फीका, अपना न नाम जो ले सकते, परिचय न तेज से दे सकते , ऐसे भी कुछ नर होते हैं, कुल को खाते, ‘औ’ खोते हैं। विक्रमी पुरुष लेकिन, सिर पर, चलता न छत्र पुरखों . . . Read More . . .
मेरी गुड़िया प्यारी-प्यारी बातें उसकी न्यारी-न्यारी नन्हीं सी यह फूल सी बच्ची छोटी सी पर दिल की सच्ची कोमल-कोमल हाथों वाली नीली-नीली आँखों वाली गोरे-गोरे गाल हैं उसके भूरे-भूरे बाल हैं उसके नन्हे पैरों से जब चलती गिर जाए तो ख़ुद ही संभलती . . . Read More . . .
मुझे प्यारी मेरी माँ, दुनिया से है न्यारी माँ। प्यार से सुबह जगाती है, मीठा दूध पिलाती है। पहना के मुझे सुन्दर कपड़े, स्कूल छोड़ के आती है। अच्छे अच्छे खाने बनाती, अपने हाथ से मुझे खिलाती। रोज खेलती मेरे साथ, चलती मेरा पकड के हाथ। . . . Read More . . .