लालच बुरी बला कविता, Lalach Buri Bala Hindi Poems Nursery Rhymes, लोकप्रिय कवियों तथा कवित्रियों द्वारा हिंदी में बच्चों की कविताओं का संग्रह, बच्चों के लिए लिखी गई बाल-कविताएं, हिंदी कविता, हास्य के लिए लिखी गयी कविताएं, छोटे बच्चों की छोटी कविताएं यहाँ पढ़ सकते हैं।
एक थी बुढ़िया, लालच की पुड़िया।
मुर्गी एक थी, उसके पास।
वही थी केवल, उसकी आस।
बेचकर उसका अंडा, खाती थी वह खाना।
फिर भी वह मुर्गी को, कम देती थी दाना।
एक बार बुढ़िया को, आया एक विचार।
क्यों न मैं मुर्गी के, सब अंडे कर दूं पार।
बेच सभी अंडो को, एक सुंदर महल बनाऊ।
घूमूं मोटर गाड़ी में, रानी-रानी कहलाऊँ।
फिर अगले दिन ही उसने, अपनी मुर्गी को घेरा।
और पेट में उसके झट से, भोंका अपना छुरा।
पर न मिला कोई अंडा, बुढ़िया झर-झर रोई।
और जोर-जोर चिल्लाई, लालच बुरी बला है भाई।
नोट :- आपको ये पोस्ट कैसी लगी, कमेंट्स बॉक्स में जरूर लिखे और शेयर करें, धन्यवाद।