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पकौड़ा - कविता

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Pakoda Hindi Rhymes
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"कविता"

चौराहे पे ठेल खडी थी,
गरम कड़ाही तेल-भरी थी।
तेल गरम था, उछल-कूद थी,
चौड़ी इक कचौड़ी उछली।
गिरी थाल पर गौल घूमकर,
इक पकौड़े से टकराई।।

डरा पकौड़ा, सरका थोड़ा,
पालक का था सुखा-सिकुड़ा।
डरकर बोला-जल हौ रानी,
जल जल जल कचौड़ी रानी।
नाच रही थी घिरी कचौड़ी,
बड़ी कुरकुरी जैसे पपड़ी।।

बुला रही थी गाल बजाकर,
नाक चढ़ाकर पेट फुलाकर।
आ जा गौरब सौरभ राजा,
चिया चतुरी दौड़ के आ जा।
चटनी लगा के मुझके खा जा,
मुझ्कौ चाट-चाट के खा जा।।

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