उठो द्रोपदी कविता, Utho Dropadi Hindi Poems Rhymes, लोकप्रिय कवियों तथा कवित्रियों द्वारा लिखी गई हिंदी में कविताओं का संग्रह, बच्चों के लिए लिखी गई बाल-कविताएं, हिंदी कविता, हास्य के लिए लिखी गयी कविताएं यहाँ पढ़ सकते हैं।
उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालो,
अब गोविन्द न आयेंगे।
कब तक आस लगाओगी तुम,
बिके हुए अखबारों से।
कैसी रक्षा मांग रही हो,
दु:शासन दरवारों से।
स्वंय जो लज्जाहीन पड़े हैं,
वे क्या लाज बचायेंगे।
उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालो,
अब गोबिन्द न आयेंगे।
कल तक केवल अंधा राजा,
अब गूंगा बहरा भी है।
होंठ सिल दिये हैं जनता के,
कानों पर पहरा भी है।
तुम्ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझायेंगे।
उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालो,
अब गोबिन्द न आयेंगे।
छोड़ो मेंहदी भुजा संम्भालो,
खुद ही अपना चीर बचा लो।
द्यूत बिठाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे।
उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालो,
अब गोविद न आयेंगे।
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