समंदर की लहरें, सुनहरी रेत
रामेश्वर द्वीप की वह छोटी पूरी दुनिया
सबमें तू निहित, सब तुझमें समाहित।
तेरी बाहें में पला मैं, मेरी कायनात रही तू
जब छिड़ा विश्व युद्ध, छोटा सा मैं,
जीवन बना था चुनौती, जिंदगी अमानत
मीलों चलते थे हम, पहुँचते किरणों से पहले।
कभी जाते मंदिर लेने स्वामी से ज्ञान,
कभी मौलाना के पास लेने अरबी का सबक,
स्टेशन को जाती रेत भारी सड़क,
बांटे थे अख़बार मैंने, चलते पलते साए में तेरे।
दिन में स्कूल, शाम में पढाई
मेहनत, मशकत, दिक्कतें, कठिनाई,
तेरी पाक शख्सीयत ने बना दी मधुर यादें।
जब तू झुकती नमाज में उठाये हाथ
अल्लाह का नूर गिरता तेरी झोली में
जो बरसता मुझ पर, और मेरे जैसे कितने नसीब वालों पर
दिया तूने हमेशा दया का दान।
याद है अभी जैसे कल ही
दस बरस का मैं, सोया तेरी गोद में।
बाकी बच्चों की इर्ष्या का बना पात्र
पूरनमासी की रात, भरती जिसमें तेरा प्यार।
आधी रात में, अधमुन्धी आँखों से ताकता तुझे,
थमता आँसू पलकों पर, घुटनों के बल
बांहों में घेरे तुझे खड़ा था मैं।
तूने जाना था मेरा दर्द, अपने बच्चों की पीड़ा।
तेरी उँगलियों ने, निथारा था दर्द मेरे बालों से
और भरी थी मुझमें, अपने विश्वास की शक्ति
निर्भय हो जीने की, जितने की।
जिया मैं, मेरी माँ!, और जीता मैं।
क़यामत के दिन, मिलेगा तुझसे फिर तेरा कलाम
माँ तुझे सलाम।