मैं तो वहीँ खिलौना लूँगा, मचल गया दीना का लाल।
खेल रहा था जिसको लेकर, राजकुमार उछल उछल।
व्यथित हो उठी माँ बेचारी, या स्वर्ण-निर्मित वह तो
खेल इसी से लाल नहीं है, राजा के घर भी यह तो।
राजा के घर, नहीं नहीं माँ, तू मुझको बहकती है,
इस मिट्टी से खेलेगा क्या, राजपुत्र तो ही कह तो?
फेंकदिया मिट्टी में उसने, मिट्टी का गुड्डा तत्काल,
मैं तो वह खिलौना लूँगा, मचल गया दीना का लाल।
मैं तो वह खिलौना लूँगा, मचल गया शिशु राजकुमार,
वह बालक पुचकार रहा था, पथ में जिसको बार-बार।
वह तो मिट्टी का ही होगा, खेलो तुम तो सोने से
दौड़ पड़े सब दास दासियाँ, राजपुत्र के रोने से।
मिट्टी का हो या सोने का, इनसे वैसा एक नहीं,
खेल रहा था उछल उछल कर, वह तो उसी खिलौने से।
राजहठी ने फेंक दिये सब, अपने रजत हेम उपहार,
लूँगा वही, वही लूँगा मैं, मचल गया वह राजकुमार।