होली खेलन गए ससुराल लला होली खेलन गए ससुराल टपकत तेल लगो जुल्फन में मेंहदी लगाय लई दाढ़ी में आंख में सुरमा, मुंह में बीड़ा अचकन जरीन की भारी लला होली खेलन गए ससुराल।। . . . Read More . . .
प्यासी धरती, बरसो बादल! प्यासा-प्यासा हर वन-उपवन। रूखे-सूखे से घर-आँगन। ऊँ प्यासे सूखे खेतों पर, इन प्यासे नन्हें पौधों पर शीतल जल ले परसो बादल! प्यासी धरती, बरसो बादल! अपनी लंबी-सी झोली में तुम ढेरों पानी भर लाओ। खुश होकर बिजली चमकाओ, गड़गड़ गड़गड़ गाना गाओ। रिमझिम रिमझिम बरसो बादल! . . . Read More . . .
चेत करो, अब चेत करो, चेतक की टाप सुनाई दी। भागो-भागो, भाग चलो, भाले की नोक दिखाई दी।। दौड़ाता अपना घोड़ा अरि, जो भागे बढ़ जाता था। उछल मौत से पहले उसके, सिर पर वह चढ़ जाता था।। लड़ते-लड़ते रख देता था, टाप कूदकर गैरों पर। हो जाता था खड़ा कभी, अपने चंचल दो पैरों पर।। आगे-आगे बढ़ता था वह, भूल न पीछे मुड़ता था। बाज नहीं, खगराज नहीं, पर आसमान में उड़ता था।। . . . Read More . . .
कड़वाहट में तुम मीठा रस घोल दो, नन्हे मुन्नों! भारत की जय बोल दो। देश एक बगिया, तुम इसके फूल हो, बगिया की माटी चंदन, तुम धूल हो। गौतम-गाँधी का यह देश महान है, इसकी माटी का तुम पर अहसान है। मत भूलो, इसकी माटी का मोल दो, नन्हें मुन्नों! भारत की जय बोल दो। . . . Read More . . .
जब भी याद आता है वह विशाल दीर्घायु वृक्ष याद आते हैं उपनिषद्, याद आती एक स्वच्छ सरल जीवन शैली। उसकी सदा शांत छाया में, वह एक विचित्र-सी उदार गुणवत्ता, जो गर्मी में शीतलता देती और जाड़ों में गर्माहट। याद आती एक तीखी, पर मित्र-सी सोंधी खुशबू, जैसे बाबा का स्वभाव। याद आती पेड़ के नीचे सबसे लिए हमेशा पड़ी रहने वाली दो-चार खाटे, निबौरियों से खेलता बचपन....... . . . Read More . . .