सूरज चलता रहता हरदम,
कभी न खाता, कभी न पीता।
कौन दवा है जिसको खाकर
कभी न मरता, रहता जीता।।
दिन भर तो वह चमका करता
किन्तु शाम को छिप जाता है।
धरती पर और आसमान में
तब अँधियारा छा जाता है।।
लगता है, थककर के सूरज,
सोने कहीं चला जाता है।
अगले दिन फिर जगकर के वह
मुझे जगाने आ जाता है।।
अगर नहीं यह सूरज होता,
फिर हम धूप कहाँ से लाते ?
रात रात ही रहती फी तो,
हर पल ही हम दीप जलाते।।
इसके बिना न फसलें उगतीं,
सोचो, फिर हम सब क्या खाते ?
हरियाली का नाम न होता,
सब प्राणी भूखे मर जाते।।
सूरज से हम चलना सीखें,
सूरज से सीखें हम तपना।
तब वह सब कुछ पा जाएँगे,
अब तक जो लगता था सपना।।