गोविन्द चन्द्र पाण्डे का जीवन परिचय

गोविन्द चन्द्र पाण्डे का जीवन परिचय, गोविन्द चन्द्र पाण्डे की जीवनी, Govind Chandra Pande Biography In Hindi, आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डेय का जन्म 30 जुलाई 1923 को इलाहाबाद में हुआ। उत्तर प्रदेश के नगर काशीपुर में आ कर बसे अल्मोड़ा के एक ग्राम पिलखा से निकले सुप्रतिष्ठित पहाड़ी ब्राह्मण परिवार में जन्मे, श्री पीताम्बर दत्त पाण्डेय (भारत सरकार की लेखा सेवा के उच्च अधिकारी) उनके पिता एवं श्रीमती प्रभावती देवी पाण्डेय उनकी माता थीं।

Govind Chandra Pande Jeevan Parichay Biography
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डॉ॰ गोविन्द चन्द्र पाण्डेय (30 जुलाई 1923 - 21 मई 2011) संस्कृत, लेटिन और हिब्रू आदि अनेक भाषाओँ के असाधारण विद्वान, कई पुस्तकों के यशस्वी लेखक, हिन्दी कवि, हिन्दुस्तानी अकादमी इलाहबाद के सदस्य राजस्थान विश्वविद्यालय के [कुलपति] और सन २०१० में पद्मश्री सम्मान प्राप्त, बीसवीं सदी के जाने-माने चिन्तक, इतिहासवेत्ता, सौन्दर्यशास्त्री और संस्कृतज्ञ थे।

काशीपुर से उन्होंने माध्यमिक शिक्षा एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परीक्षाएं दोनों ही प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण कीं और उसी दौरान पण्डितप्रवर श्री रघुवीर दत्त शास्त्री और पण्डित रामशंकर द्विवेदी जैसे उद्भट विद्वानों के सान्निध्य में व्याकरण, साहित्य, एवं शास्त्रों का पारम्परिक रीति से (संस्कृत माध्यम से) आद्योपांत गहन अध्ययन किया। पहली कक्षा से इलाहाबाद में एम. ए. तक की सभी परीक्षाओं में सर्वोच्च्च अंक ले कर विख्यात विद्वान् और सुभाष चन्द्र बोस के मित्र प्रो॰ क्षेत्रेश चन्द्र चट्टोपाध्याय प्रोफ़ेसर, प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग, के अधीन तुलनात्मक भाषाशास्त्र, धर्म, दर्शन और इतिहास की गहनतर शिक्षा प्राप्त की। प्रो॰ क्षेत्रेश चन्द्र चट्टोपाध्याय के निर्देशन में ही इन्होंने 1947 ई0 में डी.फिल. की उपाधि प्राप्त की। इन्होंने अपने इस शोधकाल में ही पालि, प्राकृत. फ्रेंच, जर्मन और बौद्ध चीनी भाषाओं का भी अध्ययन किया और बाद में डी.लिट् की उपाधि भी इलाहबाद विश्वविद्यालय से ही प्राप्त की।

आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डेय ने 1947 ईस्वी से 1957 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर (लेक्चरर) और एसोसियेट प्रोफ़ेसर (रीडर) के रूप में प्रध्यापन-कार्य किया। 1957 ई. में प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति और पुरातत्व विषय के प्रथम प्रोफ़ेसर आचार्य होकर आप गोरखपुर विश्वविद्यालय चले गये। 1962 से 1977 तक यह राजस्थान विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर रहे और बाद में 1974-'77 के बीच इसी विश्वविद्यालय के उप कुलपति पद पर भी रहे। 1978 में पाण्डेय जी पुनः अपनी जन्मभूमि इलाहाबाद आये और 1985 से 1988 तक तीन वर्ष तक ICHR (इन्डियन कौंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च) (आई0 सी0 एच0 आर0) के प्रथम राष्ट्रीय फैलो नियुक्त हुए। तत्काल बाद भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् की विज्ञान, दर्शन, संस्कृति, इतिहास की सम्पादकत्व योजना में प्रमुख सम्पादक/ सलाहकार के रूप में भी आप कार्यरत रहे। डॉ॰ पाण्डेय भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला के निदेशक और केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय सारनाथ के अध्यक्ष एवं इलाहाबाद संग्रहालय के अध्यक्ष भी रहे।

समय समय पर प्रो॰ पाण्डेय भारत सरकार की कई महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य भी रहे एवं देश-विदेश की अनेक महत्वपूर्ण बौद्धिक संगोष्ठियों में भागीदार होते रहे। गोविन्द चन्द्र पाण्डेय द्वारा लिखे गये संस्कृति, दर्शन, साहित्य, इतिहास-विषयक अनेक आलोचनात्मक शोधग्रन्थ, काव्य-ग्रंथ और विविध शोधपूर्ण आलेख, भारत और विदेशों में सम्मानपूर्वक प्रकाशित हैं। आप द्वारा संस्कृत भाषा में रचित मौलिक एवं अनूदित तथा प्रकाशित प्रमुख ग्रन्थ ‘दर्शन विमर्श:’ 1996 वाराणसी, ‘सौन्दर्य दर्शन विमर्श:’ 1996 वाराणसी, ‘एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति’ 1997 वाराणसी ‘न्यायबिन्दु’ 1975 सारनाथ/ जयपुर, इसके अतिरिक्त संस्कृति एवं इतिहास विषयक पाँच ग्रन्थ और दर्शन विषय के आठ ग्रन्थों में ‘शंकराचार्य: विचार और सन्दर्भ‘ ग्रन्थ महनीय हैं। विविध साहित्यिक कृतियों में आप द्वारा विरचित आठ अन्य ग्रन्थ संस्कृत वाड्मय को विभूषित कर रहे हैं। इन्होंने ऋग्वेद की अनेक कविताओं का सरस हिन्दी काव्यानुवाद भी किया था।

बौद्ध दर्शन और बुद्धकालीन भारत पर इनके ग्रंथ सर्वोत्कृष्ट माने जाते हैं। ज्योतिष पर भी उनका अधिकार था। बाद के दिनों में वेद वाङ्मय का सर्वांगीण विमर्श प्रस्तुत करने हेतु लिखा गया इनका ग्रंथ ‘वैदिक संस्कृति’ भी शिखर स्तर का ग्रंथ है। यह ग्रंथ जब लिखा जा रहा था, मैं इनके निकट संपर्क में था, क्योंकि इनका यह शौक सुप्रसिद्ध था कि इलाहाबाद में रहते हुए अपने जन्मदिन पर इलाहाबाद म्यूजियम में देश के शिखरस्थ मनीषियों की किसी न किसी विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी अवश्य ही आयोजित होती थी। मुझ जैसे अधकचरे को भी ये अवश्य बुलाते थे। मैंने इस ग्रंथ का शीर्षक सुझाया था ‘वैदिक वाङ्मय’, पर उन्होंने ‘वैदिक संस्कृति’ नाम क्यों रखा, इसका औचित्य उन्होंने यह बताया कि इस में उपनिषद् वाङ्मय का भी पूरा विमर्श है। यह शीर्षक ही दोनों को समाहित कर सकता है। इन्होंने वहीं बताया था कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के मित्र क्षेत्रेश बाबू से ये संस्कृत पढ़े थे और उनके सामने भी उनकी कक्षाएँ, उनके आदेश पर ये संस्कृत माध्यम में ही पढ़ाते थे। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि संस्कृत पर इनका किस गहराई तक अधिकार था। आज शायद देश में चार-पाँच विद्वान् ही उस कद-काठी के बचे हों।

प्रसिद्ध अंग्रेजी कवियों की कविताओं का संस्कृत में अनुवाद ‘अस्ताचलीयम्’ और प्राकृत गाथा सप्तशती का हिन्दी के दोहों में अनुवाद ‘महिलाएँ’ शीर्षक से उन्होंने निकाला।

तुलनात्मक धर्म पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय काशी में दिए इनके संस्कृत स्मारक भाषण का ग्रंथाकार प्रकाशन हुआ है ‘एक सद् विप्रा बहुधा वदन्ति’ शीर्षक से। उसमें इन्होंने धर्म का जो विवेचन किया है, वह मानव के इतिहास में धर्म की अवधारणा से लेकर धर्म को सम्प्रदाय बना देने वाले पंथों की विवेचना तक समाहित किये हुए है। कोई संस्कृत-पंडित भी ऐसा ग्रंथ लिख पाए, यह कम ही संभव है। इससे अधिक अजूबा- है इनका तुलनात्मक सौंदर्यशास्त्र जिसका शीर्षक है, ‘सौंदर्यदर्शन विमर्शः’। इसमें यूनानी सौंदर्यशास्त्र से लेकर बॉम गार्टन की जर्मन कला परिभाषाओं से होते हुए संस्कृत काव्यशास्त्र को लपेट कर फ्रांसीसी क्रोचे और अस्तित्ववाद तक ये अपने विमर्श को ले आए हैं। संस्कृत में यह सब लिखना कठिन होता है, यद्यपि संस्कृत ही विश्व में ऐसी एक भाषा है जिसमें विश्व भर की अवधारणाओं के लिए शब्द बन सकते हैं। ऐसे शब्द बनाते-बनाते इन्होंने, (शायद विनोद में) जर्मनी के एक सौंदर्यशास्त्री बॉम गार्टन (जो ललित कलाओं के वर्गीकरण का जनक माना जाता है) का नाम भी संस्कृत में उतार डाला ‘वृक्षोद्यान’ (जर्मन में बॉम, वृक्ष होता है, गार्टन उद्यान याने गार्डन)"

कुछ प्रमुख ग्रन्थ

  1. भारतीयता के मूल स्वर
  2. दर्शन विमर्श’ 1996 वाराणसी
  3. सौन्दर्य दर्शन विमर्श 1996 राका प्रकाशन, जयपुर / वाराणसी
  4. एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति 1997 वाराणसी
  5. न्यायबिन्दु 1975 सारनाथ, जयपुर
  6. भक्तिदर्शनविमर्शः
  7. Social and Economic Life of Early Medieval Bihar: forwarded G. C. Pande Publisher: Allahabad : Raka Prakashan, 2005.
  8. भागीरथी Bhagirathi (Poetry in Hindi and Sanskrit, awarded the Saraswati Samman (an annual award for outstanding prose or poetry literary works in any Indian language.)
  9. Kalidas and His Age (1999)
  10. Timeless River (कविता-संग्रह) (selected poems from Bhagirathi)
  11. महिलाएं Mahilayen गाथा सप्तशती का अनुवाद
  12. जया ('Jaya') (कविता संग्रह) (poems)
  13. हंसिका 'Hansika (कविता-संग्रह) (poems)
  14. मूल्य-मीमांसा Mulya Mimansa
  15. The Meaning and Process of Culture
  16. क्षण और लक्षण' (कविता-संग्रह) "Kshan aur Lakshan" (poems)
  17. अग्निबीज (Agni Beej)(poems) : भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली
  18. धर्मकीर्ति विरचित 'न्यायबिन्दु' (अनुवाद, व्याख्या), 1972 Nyaya Bindu
  19. रत्नकीर्ति विरचित 'अपोहसिद्धि'(अनुवाद एवं व्याख्या), 1971 Apohh Siddhi
  20. Consciousness Values and Culture
  21. Life and Thought of Shankarachary'a
  22. Foundations of Indian Culture
  23. Studies in the origin of Buddhism
  24. बुद्ध धर्म के विकास का इतिहास
  25. Jain thought and culture
  26. भारतीय समाज
  27. ऋग्वेद : चौथा एवं सप्तम मंडल
  28. अर्द्धशती का भारतीय काव्य चिंतन :पक्ष और विपक्ष
  29. पालि साहित्य का इतिहास
  30. इतिहास: स्वरुप एवं सिद्धांत
  31. मंजुनाथ ग्रंथावली' समीक्षा
  32. शंकराचार्य : विचार और सन्दर्भ

सम्मान और पुरस्कार

  1. पद्म श्री के अलावा इन्हें अनेकानेक पुरस्कार और सम्मान मिले जिनमें
  2. भारत सरकार द्वारा विशिष्ट धनराशि रूप पुरस्कार, 
  3. बिडला ट्रस्ट का सरस्वती सम्मान 2003-2004, 
  4. मनीषा-सम्मान, 
  5. मंगलाप्रसाद पुरस्कार, 
  6. विज्ञान दर्शन पुरस्कार, 
  7. नरेश मेहता सम्मान, 
  8. भारतीय ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी पुरस्कार, 
  9. साहित्य अकादमी का सर्वोच्च सम्मान (महत्तर सदस्यता रूप में),
  10. उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का विश्व भारती पुरस्कार
  11. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की मानद डी.लिट् उपाधि, 
  12. श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ से महामहोपाध्याय की उपाधि प्रमुख हैं।

इनका देहावसान ८८ वर्ष की परिपक्व अवस्था में कुछ समय अस्वस्थ रहने के बाद दिल्ली में 21 मई 2011 को हुआ।

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