बालासाहेब ठाकरे का जीवन परिचय

Balasaheb Thackeray Biography In Hindi, बालासाहेब ठाकरे का जन्म पुणे शहर में 23 जनवरी 1926 को रमाबाई और केशव सीताराम ठाकरे (प्रबोधनकार ठाकरे के नाम से भी जाने जाते थे), के यहा हुआ। वो अपने 9 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। केशव ठाकरे एक सामाजिक कार्यकर्त्ता थे जो 1950 में हुए संयुक्त महाराष्ट्र अभियान में भी शामिल थे और मुंबई को भारत की राजधानी बनाने के लिए प्रयास करते रहे।

Balasaheb Thackeray Biography
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बालासाहेब ठाकरे के पिता अपने अभियान को सफल बनाने के लिए हमेशा से ही सामाजिक हिंसा का उपयोग करते थे। लेकिन उन्होंने यह अभियान छोड़ दिया था क्यू की उस समय ज्यादातर लोग उनपर भेदभाव का आरोप लगा रहे थे। बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) ने मीना ठाकरे से विवाह कर लिया। बाद में उन्हें 3 बच्चे हुए, बिंदुमाधव ठाकरे, जयदेव ठाकरे और उद्धव ठाकरे।

19 जून 1966 को महाराष्ट्रियन लोगो के हक्को के लिए शिवसेना पार्टी की स्थापना की। और 1970 में मराठी साहित्य के इतिहासकार बाबासाहेब पुरंदरे और महाराष्ट्र ट्रेड यूनियन के मुख्य अधिकारी माधव मेहेरे के पार्टी में शामिल होने के बाद पार्टी की ताकत और अधिक मजबूत हो गयी थी। महाराष्ट्र में स्थापित होने के बाद शिवसेना का मुख्य उद्देश महाराष्ट्र में गैर-मराठी के विरुद्ध मराठियों के लिए जॉब निर्माण करना था। और इसी को देखते हुए 1989 में सेना ने सामना अखबार की स्थापना की। राजनैतिक रूप से देखा जाये तो शिवसेना किसी एक समुदाय की पार्टी नहीं थी। उन्होंने मुंबई में बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) के साथ गठबंधन जारी किया। और 1995 के महाराष्ट्र के मुख्य चुनावो में बीजेपी और सेना को भारी बहुमतो से विजय प्राप्त हुई। और 1995 से 1999 तक उनके कार्यकाल के समय ठाकरे ने स्वयम को “रिमोट कण्ट्रोल” मुख्यमंत्री घोषित किया।

28 जुलाई 1999 को चुनाव आयोग ने बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) के वोटिंग करने पर प्रतिबन्ध लगाया गया और साथ ही 11 दिसम्बर 1999 से 10 दिसम्बर 2005, 6 साल तक किसी भी चुनाव में शामिल होने से मना किया, क्योकि उन्हें धर्म के नाम पर वोट मांगते पाया गया था। और उनके इस प्रतिबन्ध के खत्म होने के बाद पहली बार उन्होंने BMC चुनावो में वोटिंग की थी।

बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) ने यह दावा किया था की शिवसेना मुंबई में स्थित मराठी माणूस की मदत करेंगी। उनका ऐसा मानना था की जो लोग उनके धर्म का विरोध करते है उन्हें निच्छित ही भारत से निकाल देना चाहिये। विशेषतः कोई जब हिंदु धर्म का मजाक बनाये तब निच्छित ही उसका विरोध किया जाना चाहिये। जिस समय महाराष्ट्र में बेरोजगारी जोरो से फ़ैल रही थी, उसी समय बालासाहेब ने महाराष्ट्र का विकास करनी की ठानी और वहा के लोगो को कई तरह से रोजगार उपलब्ध करवाये।

17 नवम्बर 2012 को आये अचानक ह्रदय विकार के कारण बालासाहेब ठाकरे की मृत्यु हुई। जैसे ही मुंबई में उनके मृत्यु की खबर फैलती गयी वैसे ही सभी लोग उनके निवास स्थान पर जमा होने लगे और कुछ ही घंटो में तेज़ी से चलने वाली मुंबई शांत सी हो गयी थी, सभी ने अपनी दुकाने बंद कर दी थी। और पुरे महाराष्ट्र में हाई अलर्ट जारी किया गया। और महाराष्ट्र पुलिस ने पुरे महाराष्ट्र में 20000 पुलिस ऑफिसर्स, और 15 रिज़र्व पुलिस के दलों के साथ शांति बनाये रखने के लिए निवेदन किया। बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) के प्रति लोगो के प्यार को देखकर उस समय के भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अपने शहर में शांति बनाये रखने का आदेश दिया। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी काफी प्रतिष्टा की और पुरे सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गयी।

18 अक्टूबर को बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) के शरीर को शिवाजी पार्क में ले जाया गया था। उनका दाह संस्कार शिवाजी पार्क में किया गया। जहा शिवसेना ने अपने कई अभियान को अंजाम भी दिया था। बाल गंगाधर तिलक के बाद सार्वजानिक स्थान पर यह पहला दाह संस्कार था। लाखो लोग उनके दाह संस्कार में उपस्थित थे। समाचार पत्रिकाओ के अनुसार उपस्थित लोगो की संख्या तक़रीबन 1.5 लाख से 2 लाख तक रही होंगी। उनके दाह संस्कार को देश के सभी न्यूज़ चैनल द्वारा प्रसारित किया गया। लोकसभा और विधानसभा के किसी प्रकार के कोई सदस्य ना होने के बावजूद उन्हें इतना सम्मान दिया गया था। कोई कार्यकालिन पदवी ना होने के बावजूद उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गयी, जो देश में बहोत ही कम लोगो को दी जाती है। साथ ही बिहार के भी दोनों मुख्य सभागृह में भी उन्हें श्रधांजलि दी गयी।

बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) मराठी भाषा के प्रेमी थे। वे हमेशा से महाराष्ट्र में मराठी भाषा को उच्च स्थान पर पहोचाना चाहते थे। उन्होंने मराठी लोगों के हक्क के लिए कई अभियान और आन्दोलन भी किये। जॉब के क्षेत्र में मराठियों के आरक्षण के लिए उन्होंने कई विवाद खड़े किये। महाराष्ट्र में लोग उन्हें “टाइगर ऑफ़ मराठा” के नाम से जानते थे। वे पहले व्यक्ति थे जिनकी मृत्यु पर लोगो ने बिना किसी नोटिस के स्वयम अपनी मर्ज़ी से पूरी मुंबई बंद रखी थी।

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