सोनिया गांधी का जीवन परिचय

सोनिया गांधी का जीवन परिचय, Sonia Gandhi Biography in Hindi, सोनिया का जन्म वैनेतो, इटली के क्षेत्र में विसेन्ज़ा से २० कि०मी० दूर स्थित एक छोटे से गाँव लूसियाना में हुआ था। उनके पिता स्टेफ़िनो मायनो एक भूतपूर्व फासिस्ट सिपाही थे जिनका निधन १९८३ में हुआ। उनकी माता पाओलो मायनों हैं। उनकी दो बहनें हैं। उनका बचपन टूरिन, इटली से ८ कि०मी० दूर स्थित ओर्बसानो में व्यतीत हुआ। १९६४ में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में बेल शैक्षणिक निधि के भाषा विद्यालय में अंग्रेज़ी भाषा का अध्ययन करने गयीं जहाँ उनकी मुलाकात राजीव गांधी से हुई जो उस समय ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज में पढ़ते थे। १९६८ में दोनों का विवाह हुआ जिसके बाद वे भारत में रहने लगीं। राजीव गांधी के साथ विवाह होने के काफी समय बाद उन्होंने १९८३ में भारतीय नागरिकता स्वीकार की। उनकी दो संतान हैं - एक पुत्र राहुल गांधी और एक पुत्री प्रियंका वाड्रा।

Sonia Gandhi Biography Biography
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सोनिया गांधी एक भारतीय नेता हैं जो दुनिया की सबसे शक्तिशाली लोगों की लिस्ट में आती है। सोनिया जी का जन्म इटली में हुआ था। सोनिया गांधी राजीव गांधी की विधवा हैं जो नेहरु गांधी परिवार से हैं। उनके पति की मृत्यु के बाद कांग्रेस के नेताओ ने सरकार संभाल ने के लिए सोनिया को बुलाया पर उन्होंने इंकार कर दिया और कहा की राजनीती से दूर रहने वाली है। लेकिन् परिस्तिथियो को देखकर 1997 में राजनीती से जुड़ गयी। 1998 में सोनिया कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा बन गयी।

पति की हत्या होने के पश्चात कांग्रेस के वरिष्ट नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा कर दी परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि, "मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूँगी।"

काफ़ी समय तक राजनीति में कदम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन-पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उधर पी वी नरसिंहाराव के प्रधानमंत्रित्व काल के पश्चात् कांग्रेस 1996 का आम चुनाव भी हार गई, जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की। उनके दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में वो कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होंने सरकार बनाने की असफल कोशिश भी की।

राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हुए होने का मुद्दा उठाया गया। उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा और इन मुद्दों को नकारते रहे। सोनिया गांधी अक्टूबर 1999 में बेल्लारी, कर्नाटक से और साथ ही अपने दिवंगत पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ीं और करीब तीन लाख वोटों की विशाल बढ़त से विजयी हुईं। 1999 में 13वीं लोक सभा में वे विपक्ष की नेता चुनी गईं।

2004 के चुनाव से पूर्व आम राय ये बनाई गई थी कि अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधान मंत्री बनेंगे पर सोनिया ने देश भर में घूमकर खूब प्रचार किया और सब को चौंका देने वाले नतीजों में यूपीए को अनपेक्षित 200 से ज़्यादा सीटें मिली। सोनिया गांधी स्वयं रायबरेली, उत्तर प्रदेश से सांसद चुनी गईं। वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिये कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फ़ैसला किया जिससे कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ।

16 मई 2004 को सोनिया गांधी 16-दलीय गंठबंधन की नेता चुनी गईं जो वामपंथी दलों के सहयोग से सरकार बनाता जिसकी प्रधानमंत्री सोनिया गांधी बनती। सबको अपेक्षा थी की सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी और सबने उनका समर्थन किया। परंतु एन डी ए के नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर आक्षेप लगाए। सुषमा स्वराजऔर उमा भारती ने घोषणा की कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो वे अपना सिर मुँडवा लेंगीं और भूमि पर ही सोयेंगीं।

18 मई को उन्होने मनमोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बताया और पार्टी को उनका समर्थन करने का अनुरोध किया और प्रचारित किया कि सोनिया गांधी ने स्वेच्छा से प्रधानमंत्री नहीं बनने की घोषणा की है। कांग्रेसियों ने इसका खूब विरोध किया और उनसे इस फ़ैसले को बदलने का अनुरोध किया पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य कभी नहीं था। सब नेताओं ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया और वे प्रधानमंत्री बने पर सोनिया को दल का तथा गठबंधन का अध्यक्ष चुना गया।

राष्ट्रीय सुझाव समिति का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गांधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप 23 मार्च 2006 को उन्होंने राष्ट्रीय सुझाव समिति के अध्यक्ष के पद और लोकसभा का सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई 2006 में वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से पुन: सांसद चुनी गईं और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वंदी को चार लाख से अधिक वोटों से हराया। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर यूपीए के लिए देश की जनता से वोट मांगा। एक बार फिर यूपीए ने जीत हासिल की और सोनिया यूपीए की अध्यक्ष चुनी गईं।

2013 में सोनिया पावरफुल लोगो में फोर्ब्स द्वारा निकली लिस्ट में 21वे पायदान पर थी। जिनमे महिलाओ में उनका 3 पायदान था। जबकि 2007 में पावरफुल महिला थी। फोर्ब्स की 2007 की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 6 पायदान पर थी। 2010 में 9 एवं 2012 में 12 पायदान पर फोर्ब्स की लिस्ट में रही। 2007 से 2008 में सोनिया विश्व के 100 प्रभावित लोगो में से एक रही जबकि 2010 के एनुअल सर्वे ऑफ़ वर्ल्ड 50 मोस्ट वैल्युएबल फिगर में 29 पायदान पर रही।

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