वियोगी हरि का जीवन परिचय, वियोगी हरि की जीवनी, Viyogi Hari Biography In Hindi, वियोगी हरि (1895-1988 ई.) प्रसिद्ध गांधीवादी एवं हिन्दी के साहित्यकार थे। ये आधुनिक ब्रजभाषा के प्रमुख कवि, हिंदी के सफल गद्यकार तथा समाज-सेवी संत थे। "वीर-सतसई" पर इन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक मिला था। उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन, प्राचीन कविताओं का संग्रह तथा संतों की वाणियों का संकलन किया। कविता, नाटक, गद्यगीत, निबंध तथा बालोपयोगी पुस्तकें भी लिखी हैं। वे हरिजन सेवक संघ, गाँधी स्मारक निधि तथा भूदान आंदोलन में सक्रिय रहे।
वियोगी हरि का जन्म छतरपुर (मध्य प्रदेश) में सन १८९६ ई० में एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण वंश में हुआ था। पालन-पोषण एवं शिक्षा ननिहाल में घर पर ही हुई।
वियोगी हरि का सही नाम हरिप्रसाद दिवेदी था जब उनकी उम्र 6 वर्ष की थी तभी उनके पिता बलदेव प्रसाद द्विवेदी की मृत्यु हो गई थी। उनके मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण उनके नाना के घर में हुआ। उन्होंने अपने घर में ही संस्कृत और हिंदी का साधारण ज्ञान प्राप्त किया।
बाल्यकाल की उम्र में ही वियोगी हरि जी ने साहित्य सर्जन की प्रतिभा के अंदर विद्यमान थे। उन्होंने अपने 10 वर्ष की उम्र में ही कुंडलिया एवं सवैया को लिखना प्रारंभ कर दिया। अत वियोगी हरि जी एक उच्च कोटि के प्रमुख कवि के रूप में और आलोचक नाटककार निबंधकार के लेखक बने। अतः उनको सरदार पूर्ण सिंह के समक्ष निबंधकार के रूप में रखा जा सकता है।
वियोगी हरि ने बदरपुर के हाई स्कूल से वर्ष 1915 को परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। अतः उसके बाद इन्होंने अपने विविध विषयों का ज्ञान स्वाध्याय के द्वारा ही प्राप्त किया और उनके मन में भक्ति के प्रति अपना प्रेम हृदय से झलक उठता इसी कारण से रानी श्रीमती कोमल कुमारी गदरपुर की जिनके शरण में ही कृपा पात्र बन गए।
और भारत के सभी पूजनीय धर्म और प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों की वियोगी हरि ने यात्राएं की वह यात्रा करते समय ही उन्हें एक प्रसंग में ही यह प्रयाग आए थे। वियोगी ने वहीं रहकर ही सम्मेलन पत्रिका का संपादन किया था।
कुछ दिनों बाद महारानी की मृत्यु हो गई और महारानी की मृत्यु के बाद उन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया सन्यास के बाद ही उन्होंने अपना नामकरण करवाया और नाम वियोगी हरि रख लिया। उसके बाद उन्होंने हरिजन सेवक संघ ने वर्ष 1932 को सम्मिलित हो गए और हरिजन सेवकों का संपादन किया वियोगी हरि की सेवाओं को देखकर 1938 को उनको हरिजन बस्ती के उद्योग साला का व्यवस्थापक बना दिया गया और उसके बाद वियोगी हरि की 9 मई 1988 को मृत्यु हो गई।
वियोगी हरि जी ने अपने जीवन में अनेक रचनाएं लिखी जिसने गद्य और पद्य के माध्यम से उनके लिखने का तरीका था। उन्होंने अपने जीवन में हिंदी साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की अतः उनके द्वारा लिखे गए सभी निबंधों में देश सुधारक की भावना दिखाई देती थी। उनके विचार पक्षी की तरह आसमान में उड़ान मरते प्रतीत होते थे।
उन्हें अपने जीवन में प्रथम पुरस्कार वीर सत बाई नामक एक काव्य ग्रंथ लिखा जिसके अंदर उन्हें मंगलाप्रसाद पुरस्कार मिला था। उन्होंने अपने जीवन में अनेक पत्रिकाएं और पुस्तकें लिखी तथा उनके पत्रिकाओं में वर्ज मधुरी सार है।
कृतियाँ एवं संकलन
वियोगी हरि ने लगभग 40 पुस्तकें रची हैं। इनके मुख्य रचनाएँ हैं-
भाषा एवं शैली:-
भाषा कोमल शब्दावली से युक्त खड़ीबोली। अंग्रेजी, अरबी, फारसी आदि के शब्दों का प्रयोग। शैली विचारात्मक, भावात्मक, संवादात्मक आदि।