कबीर के दोहे

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"दोहा"

"कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस॥"

"विषय त्याग बैराग है, समता कहिये ज्ञान।
सुखदाई सब जीव सों, यही भक्ति परमान॥"

"रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय॥"

"हरी रस पीया जानिये, कबहू न जाए खुमार।
मैमता घूमत फिरे, नाही तन की सार ॥"

"घट का परदा खोल कर, सन्मुख दे दीदार।
बाल स्नेही साईंयां, आवे अंत का यार॥"

"कबीर दर्शन साधु के, करत ना कीजै कानि।
जो उधम से लक्ष्मी, आलस मन से हानि॥"

"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥"

"तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय॥"

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