बूढ़ा होने लगा हूँ ...

बूढ़ा होने लगा हूँ कविता, Boodha Hone Laga Hun Hindi Poems Rhymes, लोकप्रिय कवियों तथा कवित्रियों द्वारा लिखी गई हिंदी में कविताओं का संग्रह, बच्चों के लिए लिखी गई बाल-कविताएं, हिंदी कविता, हास्य के लिए लिखी गयी कविताएं यहाँ पढ़ सकते हैं।

Boodha Hone Laga Hun Hindi Rhymes
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"कविता"

खोल के मनचाही किताब के पन्ने, पढ़ते पढ़ते ही सोने लगा हूँ।
शायद लोग सही कहते हैं, अब मैं बूढ़ा होने लगा हूँ।।

पहली सी फुर्ती नहीं है बदन में, दो कदम चलने से थकने लगा हूँ।
गिनी हुई सांसें हैं बाकी, एक एक को खींच के लेने लगा हूँ।।

आंखों से कम हो गया है दिखना, कुछ ऊंचा भी अब सुनने लगा हूँ।
भूख नहीं लगती अब उतनी, जिन्दा रहने को बस दाने चुंगने लगा हूँ।।

दांत भी ढंग से काम नहीं करते, ठंडा-गर्म पानी लगने लगा है।
उम्र के आखिरी पड़ाव में क्या करूंगा नये दांत लगवाकर, इसलिये दूध में रोटी भिगो कर खाने लगा हूँ।।

पहले जिन बातों पर गुस्सा आता था, अब उनको नजर अन्दाज करने लगा हूँ।
बड़े हो गए बच्चो के आगे, अपने ही गुस्से से डरने लगा हूँ।।

प्यार तो पहले भी करता था सबको, अब जाहिर भी करने लगा हूँ।
वक्त मिले न मिले कहने का, इसलिये अब सब कुछ कहने लगा हूँ।।

मन में जितने उदगार भरे थे, आंखों से खाली करने लगा हूँ।
बार बार जो आंसू आते हैं, उन्हे आंखों की खराबी कहने लगा हूँ।।

शरीर साथ नहीं देता अब, मनोबल से उसको ढोने लगा हूँ।
पता नहीं लगने देता पर, अन्दर से तो दुर्वल होने लगा हूँ।।

उम्र जो ढलने लगी है मेरी, गलतियां अपनी गिनने लगा हूँ।
माफी तो मांग नहीं सकता पर, उन पर पछताबा करने लगा हूँ।।

सब अपने अब मेरे पास रहें, ऐसी कामना करने लगा हूँ।
वक्त अब मेरे पास जो कम है, देख देख के सबको जी भरने लगा है।।

जाना तो एक दिन है सबको पर, विस्तर पर पड़ने से डरने लगा हूँ।
चलते चलते चला जाऊं बस, यही प्रार्थना करने लगा हूँ।।

खोल के मनचाही किताब के पन्ने, पढ़ते पढ़ते ही सोने लगा हूँ।
शायद लोग सही कहते हैं कि, अब मैं बूढ़ा होने लगा हूँ।, अब मैं बूढ़ा होने लगा हूँ।।

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