जैसे हार जाएँगे - हिंदी कविता

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Jaise Har Jayenge Hindi Rhymes
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"कविता"

जीत कर भी आज, जैसे हार जाएँगे,
सपनों की नाव, कैसे उतार पाएँगे।

डुबकी लेता हूँ मछलियाँ खेलने लगती,
तेज गहरी नदी, कैसे पार जाएँगे।

मॅड़राते हुए बादल यह कड़कती बिजली,
ये चंचल मेरा मन कैसे सँभाल पाएँगे।

मकड़ियाँ जाल में रह-रह कर फँसा देती,
उलझते तन को कैसे निकल पाएँगे।

पूनम का चाँद, खुद गुम हुआ चाँदनी में,
टूटते तारे को बात कैसे बताएँगे।

मेरी आवाज पर वो थिरक-थिरक जाती,
काँपते होंठों से गीत कैसे सुनाएँगे।

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